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तुलसी शब्द-कोश
वहौंगो : आ०भ०पु० उए । जलूगा । 'प्रभु की समतां बड़े दोष दहौंगो।' कवि०
७.१४७ वह्यति : आ०प्रब० (सं० दह्यन्ते) । जलते हैं । मा० ७.१३० श्लोक २ दह्यो : (१) दहेउ। जल गया। 'मरि बोइ मतक दह्यो।' गी० २.८४.२
(२) दहिउ । दधि । 'दूध दह्यो माखन ढारत हैं।' कृ०६ दाँत : दंत । विन० १३६.७ दाँवरी : सं०स्त्री० (सं० दामन्>प्रा० दाम>अ० दावंडी)। रस्सी, दौंरी । 'दुसह
दावरी छोरि ।' कृ० १५ दाइ, ई : (समासान्त में) वि.पु. (सं० दायिन्) । देने वाला । 'सकल सुमंगल
दाई ।' गी० १.१६.२ दाइज : सं०० (सं० दायाद्य>प्रा० दायज्ज) । विवाह में प्रदेय कन्या का भाग, - चौतुक, जहेज । मा० १.३३३ ।। दाउँ : दाउ । 'सूझत सबहि आपनो दाउँ।' विन० १५३.२ दाउ : सं०पु०कए० (सं० दायः>प्रा० दाओ>अ० दाउ)। पैत, दांव । 'देव
दिवावत दाउ।' विन० १००.३ बाऊ : (१) दाउ । 'सूम जुआरिहि आपन दाऊ।' मा० २.२५८ (२) सं०० (सं०
तात:>प्रा० ताओ>अ० ताउ)। ताऊ, श्रीकृष्ण के अग्रज-बलदाऊ ।
कृ० १२ दाग : सं०पु० (फा० दाग) । (१) धब्बा (कलङ क)। 'परै प्रेम पट दाग।'
दो० ३१४ (२) जलती सलाक आदि बना हुआ चिन्ह । 'बाम बिधि भालहू न
करम दागदागिहै।' विन० ७०.३
दागिहै : दाग+भ०प्रए । दाग लगाएगा। विन० ७०.३ दागी : दाग+भूक०स्त्री० । जलायी गई, जल गई। 'कलपलता दव दागी । गी०
___३ १२.१ (इसका सम्बन्ध सं० दाघ-दाह से है।) दागे : भूकृपु०ब० । दग्ध (जैसे, जलती सलाक से दाग लगाये हुए) । 'लोग
बियोग बिषम दव दागे।' मा० २.१८४.२ दाड़िम : सं०० (सं०) । अनार : मा० ३.३०.११ दाढ़ोजार : वि.पु० (एक प्रकार की गाली) । दाढ़ी के रोएँ जलाने वाला; इतना
कष्ट देने वाला कि हृदय-ताप से दाढ़ी तक जल जाय; आततायी आत्मीयजन जो परिवार वालों के लिए कष्टकर हो । 'बयो लुनियत सब याही दाढ़ीजार
को।' कवि० ५.१२ दाढ़े : भूकृ००ब० (सं० दग्ध>प्रा० दड्ढ) । जले हुए। 'देखे लोग बिरह दव
दाढ़े।' मा० २.८०.१