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________________ तुमसी शब्द-कोश 449 दहिउ : सं०पु०कए० (सं० दधिकम्>प्रा० दहिअं>अ० दहिउ)। दही, दधि । 'यों कहि मागत दहिउ धर्यो है जो छीके।' कृ० १० वहिन : वि.पु. (सं० दक्षिण>प्रा० दहिण) । दायाँ । 'बाम दहिन दिसि चाप निषंगा।' मा० ६.११.५ । बहिनि : दहिन+स्त्री० । दायीं। 'दहिनि आखि नित फरकइ मोरी।' मा० २.२०.५ बहिबो : भकृ०पु०कए० । जलना । 'मिटि जैहै सबको सोच दव दहिबो।' गी० ५.१४.४ रहिहैं : आ०म०प्रब० । जल जायेंगे । 'रावरे पुन्य प्रताप अनल महँ अलप दिननि रिपु दहिहैं।' गी० ३.१६.२ दहिहीं : आ०म०ए० । जलूंगा । 'या बिनु परम पदहुं दुख दहिहौं ।' विन० २३१.३ वही : भूकृ०स्त्री०। (१) जला दी। जेहिं पावक की कलुषाई दही है।' कवि० ७.६ (२) जल गई। 'नीच महिपावली दहन बिन दही है।' गी० १.८७.१ .. (३) सं०० (सं० दधि>प्रा० दहि)। 'सुखमा सुरभि सिंगार छीर दुहि मयन ____ अभियमय कियो है दही री।' गी० १.१०६.३ वहं, हूं : (१) धौं। मानों। रा०न० १२ (२) संख्या। दसों। लपट कराल ज्वाल जाल माल दहूं दिसि ।' कवि० ५.१६ वहेंडि : सं०स्त्री० (सं० दधि-भाण्डी>प्रा० दहिहंडी)। दही की मटकी । 'अहिरिनि _ हाथ दहेंडि सगुन लेइ आवइ हो ।' रा०न० ५ बहे : (१) भूकृ.पु.ब० (सं० दग्ध>प्रा० दहिय) । दग्ध किये, जलाये । 'दारुन दुख दहे।' मा० ७.१३.१ (२) जले । 'ते सुख सकल सुभाय दहे री।' गी. ५.४६.२ बहेउ, ऊ : भूकृ००कए । (१) जलाया। 'दुइ सुत मारे, दहेउ पुर।' मा० ३.३७ 'प्रभु अपमान समुझि उर दहेऊ ।' मा० १.६३.५ (२) जल गया, जल उठा। 'उर दहेउ कहेउ कि धरहु धावहु ।' मा० ३.१६ छं० वह : दहहिं । जलते हैं । 'अहं अगिनि ते नहिं दहैं। वैरा० ५४ वहै : दहइ । जलता-ती है; जलाता-ती है। 'दहे न दुख की आगि ।' वैरा० ४२ दहेगो : आ०म०पू०प्रए । जलेगा, जलायेगा। 'दुहूँ भांति दीनबंधु दीन दुख दहेगो।' विन० २५९.१ दहो : दह्यो । 'तुलसी तिहुँ ताप दही है।' कवि० ७.६१ दहौं : आ०उए । जलता हूं। 'दुसह दाह दारुन दहौं।' विन० २२२.३
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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