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तुलसी शब्द-कोश
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दमि : पूकृ० । दमन करके, निग्रह द्वारा वश में करके। 'देह दमि करत बिबिध जोग
जप ।' कवि० २.६ दमु : दम+कए० । इन्द्रियनिग्रह+मनोनिग्रह । 'दमु दुर्गम दान दया मख कर्म ।'
कवि० ७.८७ दमैया : वि० । दमन करने वाला । 'कौन है दारुन दुक्ख दमैया ।' कवि० ७.५३ दयऊ : भूकृ.पु०कए । दिया। 'तनय जजातिहि जौबनु दयऊ।' मा० २.१७४.८ दया : सं० स्त्री० (सं०) । एक मनोवृत्ति जो दूसरे के कष्ट में रक्षाभाव के साथ
द्रवीभाव उत्पन्न करती है। कृपा, करुणा, अनुकम्पा । मा० १.३७.१३ दयाकर : (१) दया करने वाला (२) दया का आकार । मा० ७.१८.१ दयानिधि : दया का सागर । मा० २.१६३.८ दयाल : वि० (सं० दयाल) । दयायुक्त, दयाशील । मा० १.२१ दयाला : दयाल । मा० १.१६२ छं० १ दयालु : दयाल । मा० १.५९.६ दयावने : वि०पुब० । दया उत्पन्न करने वाले = दयनीय, दीन । 'देबी देव दानव
दयावने हा जोरै हाथ ।' हनु० १२ दयावनो : वि.पु.कए । दीन । कवि० ७.१२५ दये : दए। दयो : दयऊ । दिया । गी० १.४७.३ दर : सं०० (सं.)। (१) शङ्ख । 'कुंद इंदु दर गौर सरीरा।' मा० १.१०६.६
(२) डर, भय । 'परम दर वारय ।' मा० ६.११५.६ (३) 'दारुन दुसह दर
दुरित दरन ।' विन० २४८.१ दरकि : पूकृ० । विदीर्ण होकर । 'दरकि दरार न जाई ।' गी० ६.६.३ दरजिनि : दरजी+ स्त्री० । रा०न० ६ (फारसी में 'दर्ज-जन' सिलाई करने वाली
स्त्री को कहते हैं और 'दर्जन' सूई का नाम है; फलत: 'जिन' शब्द सीधा फारसी से विकसित है जबकि 'दरजी' उसका उत्तर विकास (पुंलिङ्गीकृत
रूप) है) दरजी : सं०० (फा० दरजी)। सिलाई का व्यवसाय करने वाली जाति विशेष ।
'ब्योंत करै बिरहा दरजी ।' कवि० ७.१३३ दरन : वि.पु.। (१) विदीर्ण करने वाला (२) दलन करने वाला। 'दीन दुख
दोष दारिद दरन ।' गी० ५.४३.४ दरनि : दरन+स्त्री० । विन० २०.२ दरप : दर्प । विन० ६३.४ दरपन : सं०पू० (सं० दर्पण) । शीशा, आरसी । दो० २४४