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तुलसी शब्द-कोश
दबकि : प्रकृ० । दबा कर, रौंद कर । 'दबकि दबोरे एक ।' कवि० ६.४१ दबत : वकृ०० । धसकता, धसकते, दबाते । 'महाबली बालि के दबत दलकति
भूमि ।' कवि० ६.१६ । दबाई : भूक०स्त्री० । दबा ली, दबोच रखी। 'दारिद दसानन दबाई दुनी दीनबंधु ।'
कवि० ७.६७ दबि : दाबि । 'मैं तो दियो छाती पबि, लयो कलिकाल दबि ।' विन० २५९.२ दबोरे : भूकृ००ब० । दबोच लिये, कुचल डाले । कवि० ६.४१ दम : सं०पु० (सं०) (१) दमन, नियन्त्रण । (२) इन्द्रियों तथा मन का निग्रह,
वासनाओं से चित्त को हटाना जो वेदान्त की छह सम्पत्तियों में द्वितीय है।
मा० १.३७.१३ दमंकहिं : दमकहिं । 'जनु दहुँ दिसि दामिनी दमकहिं ।' मा० ६.८७.३ दमका : दमक । 'सोइ प्रभु जन दामिनी दमका ।' मा० ६.१३.६ दमक : सं०स्त्री० । दमकने की क्रिया। चकचौंधने वाली तीखी दीप्ति; बिजली की
तेज चमचमाहट । मा० १.१४.२ /दमक दमकइ : दमक+प्रए । दमकती है। 'कहत बचन रद लसहिं दमक जनु
दामिनि ।' जा०म० ७२ दमकति : वकृ०स्त्री० । दमकती, चमचमाती । कृ० १८ दमकहिं : आ०प्रब० । चमचमाती हैं, तीखी किरणे फेकती हैं। 'चारु चपल जनु
दमकहिं दामिनि ।' मा० १.३४७.४ । दमके उ : भूकृपु०कए । चमचमा उठा। 'दमके उ दामिनि जिमि जब लयऊ।'
मा० १.२६१.६ दमकै : दमकहिं । 'दमकै दतियाँ दुति दामिनि ज्यों।' कवि० १.३ दमन : (१) वि० (सं०) । संचत करने वाला, दमन करने वाला। 'संसय समन
दमन मन राम सुजस सुख मूल ।' मा० ३.६ क (२) सं० । दमन करने की
क्रिया । 'दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है।' हनु० ३ दमनीय : भकृ०० (सं०) । दमन-योग्य, खण्डनीय । ‘रचेउ न धनु दमनीय ।'
मा० १.२५१ दमन : दमन+कए । एकमात्र दमनकारी। ‘मंगल मूल अमंगल दमनू ।' मा०
२.६.५ दमसीला : वि० (सं० दमशील)। मन तथा इन्द्रियों का स्वभावतः निग्रह करने
वाले, संयमी । मा० ७.२२.५ दमानक : सं०स्त्री० (फा० दमान =हाथी, अजगर, सिंह, मगर, नदी, बाढ़, जोश)।
तीव्र आक्रमण, आक्रामक वेग । 'देव भूत पितर करम खल काल ग्रह मोहि पर दवरि दमानक सी दई है।' हनु० ३८