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तुलसी शब्द-कोश
दंडकारि, री : वि० (सं० दण्ड-कारिन्) । दण्डाधिकारी, न्यायपाल, सजा देने
वाला । 'काल नाथ कोतवाल, दंड-कारि दंडपानि ।' कवि० ७.१७१ दंडपानि : वि०+सं० (सं० दण्डपाणि) । (१) हाथ में दण्ड लिये हुए । (२) लठैत।
(३) यमराज (४) कालभैरव, भैरवनाथ । कवि० ७.१७१ दंडवत : (सं० दण्डवत् =दण्डतुल्य) प्रणाम की रीतिविशेष जिसमें प्रणामकर्ता भूमि
पर साष्टाङ्ग प्रणिपात करता हुआ दण्डाकार हो जाता है । मा० १.१४५ दंडे : दंडइ। दंत : सं०० (सं० दन्त) । दाँत । कवि० १.५ दंतकथा : सं०स्त्री० (सं.)। किंवदन्ती, कहकूत, कही-कहावत, लोक-प्रचलित
__ मनगढन्त कहानी । 'इति बेद बदंति न दंतकथा ।' मा० ६.१११.१६ दंतन : दंत+संब० । दाँतों । 'नख दंतन सों भुज दंड बिहंडत ।' कवि० ६.३५ दंति, ती : सं०पू० (सं० दन्तिन्) । दन्तावल, हाथी । गी० १.६०.५ दंपति : सं०० (सं०) । पति-पत्नी (का युगल)। मा० १.६८.७ दंभ : सं०० (सं.)। (१) छलना (२) धर्म, सदाचार आदि का मिथ्या प्रदर्शन
(३) धूर्तता (४) मिथ्याभिमान । 'लोभ के इच्छा दंभ बल।' मा० ३.३८ ख बंभा : दंभ । मा० १.३५.६ दंभापहन : वि० (सं० दम्भापहन्) । दम्भनाशक । विन० ५६.१ वंभिन्ह : दंभी+संब० । दम्भियों, पाखण्डियों । 'जनु दंभिन्ह कर जुरा समाजा।'
मा०४.१५.६ दंभिहि : दम्भी को । 'दंभिहि नीति कि भावई ।' मा० ७.१०५ ख दंभी : वि०० (सं० दम्भिन्) दम्भ-युक्त । मिथ्याचारी, पाखण्डी। दंस : सं०० (सं० दंश) । एक प्रकार की बड़ी मक्खी जो तीव्र दंशन के लिए
प्रसिद्ध है=डाँस । मा० ४.१७.८ दइअ : सं०० (सं० देव>प्रा० दइअ)। भाग्य, नियति, कर्मदेव । 'आह दइअ मैं
काह नसावा।' मा० २.१६३.६ दइउ : दइअ+कए । भाग्य । 'दाहिन दइउ होइ जब सबही ।' मा० २.२८०.५ दई : भूक०स्त्री०ब० । दीं। 'असीस सब काहूं दई ।' मा० १.१०२ छं० दई : भूक०स्त्री० । दी । 'बिधि ''तुम्हहि सुंदरता दई ।' मा० १.६६ छं० दए : भूकृ०० । दिये, दिये हुए । 'जनु बंसी खेलत चित दए ।' मा० ६.८८.५ दक्ष : (१) सं०० (सं०) । सती के पिता शिव के श्वशुर=एक प्रजापति ।
'दक्षमख अखिल विध्वंसकर्ता।' विन० ४६.७ (२) वि. निपुण । 'यज्ञ रक्षण दक्ष ।' विन० ५०.४ (३) दक्षिण, दाहिना । 'दक्ष दिशि रुचिर वारीश कन्या।'
विन० ६१.७ दक्षिण : वि० (सं०) (१) दाहिना; (२) दिशाविशेष। विन० ५१.७