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________________ तुलसी शब्द-कोश 439 थोरें: (१) थोड़े से । 'सिथिल सरीरु सनेह न थोरें। मा० २.१९८.५ (२) थोड़े में। रीझत थोरें।'कवि० ७.४६ थोरे : 'थोर' का रूपान्तर । थोड़े । 'थोरे महुं जानिहहिं सयाने ।' मा० १.१२.६ थोरेहि : थोड़े ही । 'थोरेहि महुं सब कहउँ बुझाई ।' मा० ३.१५.१ योरेहु : थोड़े में भी । 'जस थोरेहुं धन खल इतराई।' मा० ४.१४.५ योरो : थोरा+कए० । 'जनि मागिये थोरो।' कवि० ७.१५३ दंतियां : सं०स्त्री०ब० । शिशु के दांत । कवि० १.३ बतुरियां : दतियाँ । 'दमकति द्वै द्वै दंतुरियां रूरौं ।' गी० १.३१.४ द : (समासान्त में) वि०पू० (सं०) । देने वाला । नर्मद, जलद आदि । दंड : सं०० (सं.)। (१) ध्वज आदि-सम्बन्धी लग्गी। 'रघुपति कीरति बिमल पताका । दंड समान भयउ जसु जाका।' मा० १.१७.६ (२) डंडा, यष्टि । 'काल दंड गहि काहु न मारा।' मा० ६.३७.७ (३) (समासान्त में) दृढ़, पुष्ट, समर्थ । 'उर बिसाल भुजदंड चंड ।' हनु० २ (४) नाल, डंठल । 'तोरौं छत्रक दंड जिमि ।' मा० १.२५३ (५) प्रणाम की साष्टाङ्ग विधि जिसमें दण्डाकार पृथ्वी पर गिरते हैं दंडवत । 'लगे करन सब दंड प्रनामा ।' मा० १.२६६.२ (६) घड़ी भर का समय=६० पल । 'दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर काम कृत कौतुक अयं ।' मा० १.८५ छं० (७) अपराध की निष्कृति=सजा । 'आन दंड कछु करिअ गोसाईं ।' मा० ५.२४.८ (८) पराजित शत्रु से ग्राह्य धन आदि । 'लै लै दंड छाडि नृप दीन्हे ।' मा० १.१५४.७ (६) राजनीति में साम, दान और भेद के अतिरिक्त-चतुर्थ उपाय ==दण्डनीति =शत्रु पर आक्रमण की नीति । 'साम दान अरु दंड बिभेदा ।' मा० ६.३८.६ दंड दंडइ : (सं० दण्डयति>प्रा० दंडइ-दण्ड देना, डाँड़ना) आ०प्रए । दण्ड देता है, डांड़ता है। 'सरल दंडै चक्र।' दो० ५३७ दंडक : संपु० (सं०) । पौराणिक राजा 'दण्ड' के नाम से प्रसिद्ध दक्षिण का वन प्रदेश-विशेष । मा० ३.१३.१६ दंडकारण्य : (दंडक+अरण्य) । दण्डक वन । विन० ५०.६
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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