________________
तुलसी शब्द-काश
429
(२) तोरि । तोड़कर । 'निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।' मा० १.१६८.५
(३) भूकृ०स्त्री० । तोड़ डाली। तोरें: (१) तुझमें । 'सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें।' मा० ३.३६.७ (२) तेरे में।
'कर गत बेद तत्त्व सब तोरें ।' मा० १.४५.७ (३) तेरे.. से । 'अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें।' मा० १.२०५.२ (४) तोड़ने से (सं० तोडितेन>प्रा० तोडिएण >अ० तोडिएँ) । 'तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई ।' मा० १.२६६.४ (५) तोड़े
हुए (स्थिति में) । 'देह गेह सब सन तनु तोरें।' मा० २.७०.६ तोरे : (१) सार्वनामिक वि०पू० । तेरे । 'राम प्रताप नाथ बल तोरे ।' मा०
२.१६२.१ (२) भूक००ब० (सं० तोडित>प्रा० तोडिय) । उच्छिन्न किये। ____ 'तुलसी जे तोरे तरु, किए देव, दिए बरु ।' कृ० १७ तोरे : आ०-भूक००+उए । मैंने तोड़े । 'कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।'
मा० ५.२२.३ तोरेहुं : तोड़ने पर भी। 'तोरेहुं धनुष ब्याहु अवगाहा ।' मा० १.२४५.६ तोरै : भकृ० अव्यय । तोड़ने । ‘फल खाएसि तरु तोरै लागा।' मा० ५.१८.१ तो : तोरइ । तोरौं : आ०उए० (सं० तोडामि>प्रा० तोडमि>अ० तोडउँ)। तोड़ता हूं, तोड़
डालू , तोड़ सकता हूं। 'तोरौं छत्रक दंड जिमि ।' मा० १.२५३ तोर्यो : भूकृ.पु.कए । तोड़ डाला। 'बालक नृपाल जू के ख्याल ही पिनाकु ____तोर्यो।' कवि० १.१२ तोष : सं०० (सं०) । सन्तोष, तुष्टि । 'तोष मरुत तब छमा जुड़ावै ।' मा०
७.११७.१४ तोषक : वि० (सं.) । तृष्ट करने वाला । मा० १.४३.४ तोषन : वि०० । तुष्ट करने (के शील) वाला । मा० ७.१०६.११ तोषनिहारा : वि.० । तुष्ट करने वाला । मा० २.४१.८ तोषये : सन्तुष्ट करने के लिए। मा० ७.१०८.६ तोषा : तोष । मा० १.४३.४ तोषि : पूकृ० । सन्तुष्ट करके । 'पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिए।' हनु० ३४ तोषिए, ये : आ०कवा०प्रए । संतुष्ट कीजिए । 'तुलसिदास हरि तोषिये सो साधन
नाहीं ।' विन० १०६.५ तोषि हैं : आ० भ०प्रए । तुष्ट करेंगे । 'जोगिनी जमति कालिका कलाप तोषिहैं ।'
कवि० ६.२ तोष : तोष+कए । 'बिन अधार मन तोषु न साँती।' मा० २ ३१६.२ तोषे : भूकृ००ब० । तोषयुक्त हुए । 'तोषे राम सखा की से।' मा० २.२२१.३ तोषेउ : भूकृ००कए० । तोषयुक्त हुआ । 'प्रभु तोषेउ ।' मा० १.७७.६