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________________ तुलसी शब्द-कोश 427 तेहैं : आ०म०प्रब० । (१) (सं० तप्स्यन्ति>प्रा० तविहिति>अ० तविहिहिं) । सन्तप्त करेंगे (२) (सं० तायिष्यन्ते>प्रा० ताइहिति>अ० ताइहिहिं) । संवृत करेंगे, छिपा देंगे। 'तनु छबि कोटि मनोजन्हि तेहैं।' गी० ५.५०.४ (दे० तावों) तो : (१) तुअ । तव , तुझ। 'सपनेहुं तो पर को पुन मोही।' मा० २.१५.१ (२) तु । 'अब तो दादुर बोलि हैं।' दो० ५६४ (३) तो (तर्हि) । 'तो तुलसिहि तारिहो।' विन० ६६.३ (४) हुतो । था। ‘मो तें कोउ न सबल तो।' गी० ५.१३.५ तोतरात : वकृ.पु । तुतलाते, रुक-रुक कर शिशुवाणी बोलते, जीभ के व्याघात से अस्पष्ट उच्चारण करते । 'मुनिमन हरत बचन कहैं तोतरात ।' कृ० २ तोतरि : वि०स्त्री० । तुतली, लड़खड़ाती (ध्वनि) । 'जौं बालक कह तोतरि बाता।' मा० १.८.६ तोतरे : वि०पू०ब० । तुतले, लटपटाते। 'अति प्रिय मधुर तोतरे बोला।' मा० १.१६६.६ तोपची : संपु० (फा०) । तोप दागने वाला । दो० ५१५ तोपिएँ : आ०म०प्रब० । पाट देंगे, (गर्त) भर देंगे। 'तुलसी बड़े पहार ले पयोधि तोपिहैं।' कवि० ६.१ तोपं : आ०प्रब । तोपे दे रहे हैं, पाट रहे हैं। 'तोपें तोयनिधि, सुर को समाजु हरषा।' कवि० ६.७ तोप्यो : भूकृ.पु०कए० । तोप दिया, पाट दिया (ढक दिया)। 'बरषि बान रघुपति रथ तोप्यो।' मा० ६.६३.३ तोम : सं०० (सं० स्तोत्र) । समूह । 'तीतर तोम तमीचर सेन ।' कवि० ६.२६ तोमनि : तोम+संब० । समूहों। 'महामीनाबास तिमि तोमनि को थलु भो।' हनु०७ तोमर : सपु० (सं०) । लोहे का बड़ा भारी भाला । मा० ३.१६ छं० तोय : स०पु० (स०) । जल । मा० २.३०६ तोयनिधि : समुद्र । मा० ६.५ तोर : वि.पु । तेरा । 'जदपि न दूषन तोर ।' मा० १.१७४ (२) परायेपन का भाव । 'मैं अरु मोर तोर ते माया।' मा० ३.१५.२ /तार, तोरइ : (सं० तोडति-तुड छेदे>प्रा० तोडइ-तोड़ना, छिन्न करना) आ०ए० । तोड़ता है, तोड़ सकता है, तोड़े, तोड़ सके। 'धनु तोरै सो बरै जानकी ।' गी० १.८६.३ तोरत : वकृ.पु । तोड़ता-ते । तुलसी तोरत तीर तरु ।' दो० ४६८
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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