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तुलसी शब्द-कोश
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ता : 'त' सर्वनाम का रूपान्तर । उस । 'ता कहँ यह बिसेष सुखदाई।' मा०
७.१२८.८ ताको, तातें, तासो, ताकी, तामहिं आदि परसर्गीय प्रयोग द्रष्टव्य हैं। तांडव : सं०० (सं.)। उद्धत नृत्य, उग्र नर्तन (जो शिव के लिए प्रसिद्ध है) तांडवित : वि० (सं०) । ताण्डवयुक्त । विन० १०.५ तांबूल : सं०० (सं.)। पान । विन० ४७.३ ताइ : पूकृ० (सं० तापयित्वा =प्रा० ताविअ>अ० तावि)। तपा कर, आंच देकर
(खरी परीक्षा लेकर) । 'और भूप परखि सुलाखि तोलि ताइ लेत ।' कवि०
७.२४ ताउ : ताय+कए । ताव, रोषावेश । 'भृगुनाथ खाइ गए ताउ ।' विन० १००.५ ताए : भूकृ००ब०। (सं० तापित>प्रा० ताइय=ताविय) । तचाए हुए,
सन्तापित, क्लेशित । 'नाथ बियोग ताप तन ताए।' मा० २.२२६.४ /ताक, ताकइ : तकइ । देखता है, बिचारता या चाहता है। 'ताकै जो अनर्थ सो
समर्थ एक आंक को।' हनु० १२ ताकत : (१) वकृ०० =तकत । देखता, देखते । (२) सं०स्त्री० (अरबी
ताकत) शक्ति । 'उपमा तकि ताकत है कबि कौं की।' कवि० ७.१४३ ताकर : (ता+कर) उसका । मा० १.१६७.७ ताहि : तकहिं । देखते हैं, लक्ष्य करते। 'जे ताकहिं पर धन पर दारा।' मा०
२.१६८.३ ताका : भूकृ०० (सं० तकित>प्रा० तक्किअ)। देखा, लक्ष्य किया, सोचा
बिचारा, चाहा । 'जस कौसिला मोर भल ताका।' मा० २.३३.८ ताकि : तकि । लक्ष्य करके, सोच-समझकर । 'तमकि ताकि तकि सिव धन धरहीं।'
__ मा० १.२५०.७ ताकिसि : आ०-भूकृ०स्त्री०+प्रए । उसने लक्षित की, निश्चित की। 'तब __ ताकिसि रघुनायक सरना।' मा० ३.२६.५ ताकिहै : आ०भ०प्रए । ताकेगा, घूर कर देखेगा। 'ताकिहै तमकि ताकी ओर
को।' विन० ३१.१ ताकी : (१) ताकि । मा० २.२२८.४ (२) (ता+की) उसकी। 'कौन ताकी
कानि ।' विन० २१५.२ ताके : (१) (सं० तकितेन>प्रा० तक्किएण>अ० तक्किएँ) ताकने से। 'जिमि
गज हरि किसोर के ताकें ।' मा० १.२९३.४ (२) (ता+के) उसके प्रति, ___ उसके लिए । 'मंगल सगुन सुगम सब ताकें ।' मा० १.३०४.१ ताके : (१) (ता+के) उसके । 'ताके जुग पद कमल मनावउँ ।' मा० १.१८.८
(२) भूक.पु.ब० । देखे, लक्षित किये । 'सरन को समरथ तुलसि उ ताके हैं।' गी० १.६४.४