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तुलसी शब्द-कोश डसाए : भूकु०पू०बहु० । बिछाये । 'पलँग डसाए।' मा० १.३५६.१ उसही : आ०भ० उए । बिछाऊँगा । ' जागें फिरि न डसहौं ।' विन० १०५.१ डहकत : वकृ००। (१) ठगता, प्रवञ्चित करना । 'बहु बिधि डहकत लोग
फिरौं ।' विन० १४१.३ (२) छीना झपटी करता-ते । खेलत खात परसपर
डहकत ।' कृ० १६ (३) विश्वासघात करते । 'डहकत एकहि एक ।' दो० ५४७ डहकति : वकृ०स्त्री० । (१) छल करती+(२) दहकता, जल जलाती। 'डहकति
है उजिअरिआ निसि नहिं घाम ।' बर० ३७ डहकाइबो : भकृ०० कए० । ठगाना, (अपने को) प्रतारित करा लेना। 'डहके तें
डहकाइबो भलो।' दो० ४३१ डहकायो : भूकृ००कए । (अपने को) ठगाया। 'अजहं विषय कहँ जतन करत,
जद्यपि बहु बिधि डहकायो।' विन० १९९.४ ।। डहकि : पूक ० । वञ्चना करके । 'डहकि डहकि परिचेहु सब काहू ।' मा० १.१३७.३
(२) होड़ लगाकर, अवज्ञा करके । 'बाल बोलि डहकि बिरावत ।' क० २ डहके : भूक००ब० । (१) ठग गये, ठग लिये, प्रतारित किये । 'कलि डहके कहु
को न ।' दो० ५४६ (२) ठगने । 'डह के तें डहकाइबो भलो।' दो० ४३१ रहार : सं०० (सं० दहर>प्रा० डहर । बालक । कायर कर कपूत कलि घर घर ___सहस डहार ।' दो० ५६० । डांग : सं० । पशु विशेष । गी० २.४७.१२ डांटति : डाटति । 'निपटहि डॉटति निठुर ज्यों।' कु० १४ डांटे : डाटे । 'डाँटे बानर भालु सब ।' रा०प्र० ३.६.५ डांडि : पूक० (सं० दण्डयित्वा>प्रा० डंडिअ>अ० डंडि) । दण्डित कर । 'केसरी ___ कुमारु सो अदंड कैसो डांडि गो।' कवि० ६.२४ डांडियत : वक पुकबा० (सं० दण्ड्यमान>प्रा० डंडीअंत) । दण्डित किया
जाता-किये जाते । 'डांडियत सिद्ध साधक पचारि ।' गी० २.४६.६ डांड़ी : सं०स्त्री० (सं० दण्डिका>प्रा० डंडिआ>आ० डंडी)। छोटा डांडा।
'मरकत भंवर डाँड़ी कनक मनि जटित ।' गी० ७.१६.३ । डोडो : सं०पु०कए० (सं० दण्ड:>प्रा० डंडो)। छड़ी, दण्ड, छत्र आदि का __दण्डाकार भाग । गी० ७.१८.२ डाकिनि, नी : सं०स्त्री० (सं० डाकिनी)। श्मशानादि की देवी, शिश भक्षिणी
पिशाची, डायन । मा० २.१३२.६ डाटत : वक०० । डाँटता-ते, भर्त्सना करता-ते । 'खिझे तें डाटत नयन तरेरे ।'
कृ०३ डाटति : वकृ०स्त्री० । भर्त्सना करती, फटकारती । 'मातु काज लागी लखि डाटति।'
कृ० १०