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तुलसी शब्द-कोश
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झकोर : सं०स्त्री० । झोंका, वेग । 'झरि झकोर खरि खीझ ।' दो० २८४ झगर : सं०० (सं० झकट>प्रा० झगड) । विवाद, कलह । रा०प्र० ६.६.२ झगरत : झगर+वक० । विवाद करते । 'खग उलूक झगरत भए।' रा०प्र०
झगेरा : झगर । 'गनतिक ए लंगरि झगरा ऊ ।' कृ० १२ झगरें : झगर+प्रव० । कलह या विवाद करते-ती हैं । 'देखि चले झगरै सुरनारि ।' . कवि० ७.१४५ झगरो : झगरा+कए० । विवाद, वैमत्य । 'बहुमति मुनि, बहु पंथ, पुराननि जहाँ
तहाँ झगरो सो।' विन० १७३.५ झगलिया : झगुलिया। 'पीत झगुलिया तन पहिराए ।' मा० १.१६६.११ झगुली : अँगुली । पीत झीनि झगुली तन सोही ।' मा० ७.७७.७ झटिति : क्रि०वि० अव्यय (सं०) । झटपट, तत्काल, शीघ्र । 'कटत झटिति पुनि
नूतन भए।' मा० ६.६२.१२ झनकार : सं० स्त्री० (सं० झणत्कार>प्रा० झणकार) झनझनाहट, स्वनिविशेष ।
_ 'कर कंकन झनकार ।' गी० १.२.१३ झपट : सं०स्त्री० (सं० झप्पा+अट गतो, अट्ट अतिक्रमहिंसयो:>प्रा० झंप्पट्टा>
अ० झंपट्ट)। झपट्टा, झप्पोमार आक्रमण, दबोचने वाला आक्रमण । 'बाज
झपट जनु लवा लुकाने ।' मा० १.२६८.३ झपट झपटइ : (सं० झप्प+अट्ट अतिक्रम हिंसयो:>प्रा० झंपट्टइ-झप्पा मारना, दबोचने हेतु टूट पड़ना) आ०प्रए० । झपटता है, दबोचने हेतु उछलकर
टूट पड़ता है । 'झपट भट कोटि मही पटक ।' कवि० ६.३६ झपटहिं : आ०प्रब० । झपट कर टूट पड़ते हैं। 'पुनि उठि झपटहिं सुर आराती।'
मा० ६.३४.१३ झपटि : पूकृ० । आक्रान्त कर, झपट्टा मारकर । 'इत उत झपटि दपटि कपि जोधा। ___मर्दै लाग ।' मा० ६.८२.५ झपटे : भूक००ब० । टूट पड़े । 'लखि के गज केहरि ज्यों झपटे ।' कवि० ६.३२ झपटेउ : भूकृ००कए० । झपट कर आक्रमण किया । 'जनु सचान बन झपटेउ
लावा ।' मा० २.२६.५ झपट : झपटहिं । 'झपट भट जे सुरदावन के ।' कवि० ६.३४ झपटै : झपटइ। झपेटें : झपटने से, पर । 'लवा ज्यों लुकात तुलसी झपटें बाज के।' कवि० ६.६ /झर झरइ : (सं० क्षरति>प्रा. झरइ-ऊपर से लम्बी धार में बहना)
आ०प्रए । झरता है । 'त्रिविध समीर नीर झर झरननि ।' गी० २.४६.५