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तृलसो शब्द-कोश
369 जोरत : वकृ.पु । जोड़ता-ते, सन्धान करता-ते ।।रघुपति चाप सर जोरत भए।' ___ मा० ६.१०२ छं० जोरहिं : आ०प्रब ० । जीड़ते-ती हैं । ‘सीय सहित सब सुता सौपि कर जोरहिं ।'
जा०म० १६७ जोरा : (१) जोर । बल, प्रबलता । उत साहिब सेवा बस जोरा।' मा० २.२४०.४
(२) सं०० (सं० जोडक>प्रा० जोडअ) । युगल, जोड़ा, वस्त्र युगल आदि।
'दरजिनि गोरे गात लिहे कर जोरा हो।' रा०न० ६ जोरि : पूकृ० . (१) जोड़कर, संपुटित करके । 'पानि जुग जोरि जन बिनती करइ
सप्रीति ।' मा० १.४ (२) एकत्र करके । 'सठ शाखामृग जोरि सहाई ।' मा०
६.२८.१ (३) जोरी जोड़ी। दे० जोरिहि। जोरिअ : आ०कवा०प्रए । जोड़ा जाय, जोड़ लीजिए। 'जोरिअ कोउ बड़ गुनी
बोलाई ।' मा० ५.२७८.३ जोरिबे : भक०पू० । जोड़ने, सम्बन्ध बनाने । 'करत जतन जा सो जोगी जन
जोरिबे की।' विन० २५८.१ मोरिहि : (जोरी+हि) । जोड़ी के, बराबरी वाले के। 'भिरे सकल जोरिहि सन
जोरी।' मा० ६.५३.४ जोरी : जोरी+ब० । जोड़ियां, जोड़े, युगल । 'चिरु जिअहं जोरी चारु चार्यो।'
मा० १.३२७ छं० ४ जोरी : (१) जोरि । जोड़कर । 'करि प्रनामु पूजा करि जोरी।' मा० १.३३०.५
(२) भू००स्त्री० । जोड़ी, बाँधी । 'बिधिवत गांठि जोरी।' मा० १.३२४ छं० ४ (३) सं०स्त्री० । जोड़ी, युगल । 'स्याम गौर सुदर दोउ जोरी ।' मा० १.१६८.५ (४) दम्पती । 'जाइ न बरनि मनोहर जोरी।' मा० १.३२५.२
(५) बराबरी वाला । 'भिरे सकल जोरहि सन जोरी।' मा० ६.५३.४ जोरु : जोर+कए । पौरुष, तेजी । 'जानि के जोरु करौ।' कवि० ७.१०२ जोरें: क्रि०वि० ! जोड़े हुए। 'सतरूपहि बिलोकि कर जोरें।' मा० १.१५०.३ जोरे : (१) भूकृ.पु । जुटाए गये, जोते गये । 'बन मृग मनहुं आनि रथ जोरे।'
मा० २.१४३.५ (२) सम्पुटित किये । 'भरत कर जोरे ।' मा० २.२०४.५ (३) सम्बद्ध किये। 'जोरे नए नाते नेह फोकट फीके ।' विन० १७६.२ (४) वि००ब० । जोड़े, युगल । 'राजहंस के से जोरे ।' गी० २.८६.४
(५) जोरें। 'मांगत तुलसिदास कर जोरे । विन० १.४ । जोरें : जोरहिं । 'देबी देव दानन दयावने व जोरै हाथ ।' हनु० १२ जोरो : भूकृ००कए । जोड़ा हुआ, जुटाया । कवि० ७.१५३ जोलहा : सं०० (फा० जोलाह, जोलाहः)। कपड़े बुनने वाली एक जाति ।
कवि० ७.१०६