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तुलसी शब्द-कोश
जोग्य : वि० (सं० योग्य) । उपयुक्त, उचित । विन० ११८.५ जोजन : सं०पू० (सं० योजन) । चार कोस की लम्बाई या मार्ग । मा० १.१२६ जोटा : सं०पू० । युगल, यग्म, जोड़ा। मा० १.२२१.३ जोति : सं०स्त्री० (सं० ज्योतिष्) । द्युति, आभा, प्रकाश । मा० १.२३८ नोतिरूपलिग : जोतिलिंग । कवि० ७.१८२ जोतिलिंग : सं०० (सं० ज्योतिलिङ्ग) । प्रकाश पुञ्जरूप शिवलिङ्ग विशेष जो
सृष्टि के आदिकाल में उदित हुआ । ब्रह्म और विष्णु दोनों क्रमश: ऊपर और नीचे की ओर उसका अन्त खोजने चले परन्तु पार न पा सके । विष्णु ने पराजय मान ली, परन्तु ब्रह्म ने छल किया-अन्त तक न पहुंच कर भी बीच में एक बिल्वपत्र पाकर बता दिया कि मस्तक पर से उसे ले आये हैं, फलतः उनको शिव ने यज्ञों में अपूज्य होने का शाप दिया। 'जोतिलिंग कथा सुनि
ताको अंत पाए बिनु, आए बिधि हरि हारि, सोई हाल भई है।' गी० १.८६.२ जोतिषी : सं०+वि० (वि० ज्योतिषिन्) । दैवज्ञ, ज्योतिर्विद् । मा० १.३१२.८ जोती : जोति । 'अरुन चरन पंकज नख जोती।' मा० १.१६६.२ जोते : (१) भू०००ब० । जोत दिये, नहे । 'ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते।'
मा० १.२६६.५ (२) खेत में हल चलाये । 'जोते बिनु, बए बिनु निफन निराए
बिनु ।' गी० २.३२.२ जोतो : भूक००कए० । जोता हुआ, हल चलाकर बोने योग्य किया हुआ । 'तेरे
राज राय दसरथ के, लयो बयो विनु जोतो।' विन० १६१.४ जोधा : वि०+सं०० (सं० योद्ध'>प्रा. जोडा)। लड़ाकू, सुभट। मा०
३.२६.२ जोनि, नी : योनि । (१) जीवजाति । 'जेहिं जेहिं जोनि करम बस भ्रमहीं।' मा०
२.२४.५ (२) उत्पत्ति स्थान, उद्गम । 'जगजोनी ।' मा० २.२६७.३ (३) मूल
कारण । 'ग्यान जोनि पावक जिमि अरनी।' मा० ७.३२.८ जोबन : सं०० (सं० यौवन>प्रा. जोव्वण) । युवावस्था, जवानी । १५ वर्ष के
अनन्तर का वय। 'जोबन ज्वर केहि नहिं बलकावा।' मा० ७.७१.२
(२) स्त्रियों के वर्णन में वक्षस्थल के उभार का भी अर्थ देता है-दे० जोबनु । जोबनु : जोबन+कए । जवानी+उरोज । 'उनरत जोबन देखि नृपति मन भावइ
हो।' रान० ५ जोर : (१) सं०० (फा० जोर)। बल, दृढ़ता। 'सिला द्रवति जल जोर।'
दो० १७३ (२) क्रि०वि० । बलात् । 'जो जरति जोर जहानहि रे।' कवि० ७.२८ (३) वि. बलिष्ठ, दृढ़ । 'अब जोर जारा जरि गातु गयो।' कवि० ७.८८ (४) जोड़, बराबरी । 'न देखत सुहृद रावरे जोर को हौं।' विन० २२६.२