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तुलसी शब्द-कोन
बोउ : (१) (जो+उ)। जो भी। (२) आ०-आज्ञा-मए । तू देख । 'सब
बरननि पर जोउ ।' मा० १.२० जोऊ : जोऊ । (१) जो भी, जो कोई (जो कुछ) । "पुनि तिन्ह के गहँ जे वई
जोऊ ।' मा० १.१६८.७ (२) तू देख । 'किसोर लोचन भरि जोऊ ।' गी०
२.१६.२ जोए : (१) भूकृ००ब० । देखे । ' जाहिं न जोए।' मा० २.६१.३ (२) देखकर।
'अब ए गढ़त महरि मुख जोए।' कृ० ११ । जोख : सं०स्त्री० । तौल । 'तुलसी प्रेम पयोधि की ताते नाप न जोख ।' दो० २८१ जोखें : तौल में, तोलने में । 'लेखें जोखें चोखें चित तुलसी स्वारथ हित ।' कवि०
७.२४
जोखे : भूकृ०पु । तौले हुए, तौल लिये । 'बल इन को पिनाक नोके नापे जोखे ___ हैं।' गी० १.६५.२ जोग : सं०० (सं० योग)। (१) सम्बन्ध, सम्पर्क । 'देह-जीव-जोग ।' विन०
२७७.२ (२) प्राप्ति । 'मनहुं मीन गन नव जल जोगा। मा० २.२६४.५ " (३) अवसर, प्रसंग। 'परब जोम जनु जेरे समाजा।' मा० १.४१.७
(४) जीवनचर्या हेतु अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति (दे० जोग छम)। जायें जोग बिनु छम ।' दो० १०४ (५) ज्योतिष में तिथि और नक्षत्र के सम्बन्ध से बनने वाला योग । 'जोग लगन गृह बार तिथि ।' मा० १.१६० (६) ज्योतिष में ग्रहयोग । मा० १.८ क (७) मिलन, संयोग (वियोग का विलोम)। 'कबहूं जोग बियोग न जा के।' मा० १.४६.८ (८) चित्त की एकाग्रता=समाधि । 'धर्म तें बिरति जोग ते ग्याना।' मा० ३.१६.१ (8) अष्टाङ्गयोग या राजयोग-जिसके यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि-ये आठ अङ्ग हैं । मा० १.३७.१० (१०) आयुर्वेद में नुस्खा या औषधियों का मिश्रण । मा० १.७ क (११) वि० (सं० योग्य>प्रा. जोग्ग)। उपयुक्त, उचित । 'हँसिबे जोग हंसें नहिं खोरी।' मा० १.६.४ (१२) उपयुक्त प्राप्य । 'नेगी नेग जोग सब लेहीं।' मा० १.३५३.६ (१३) योगसाधन+ चिकित्सा+उपयुक्त+प्राप्ति । 'जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ । 'फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ।' मा० १.१६८.४ (१४) पात्र, योग्य अधिकारी। 'पटतर
जोग बनावै लागा।' मा० २.१२०.५ जोगछेम : (युग्मक-सं० योगक्षेम) योग= अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति+क्षेम प्राप्त
वस्तु की रक्षा । जीवनवृत्ति, जीविका का संचार जिसमें प्रयत्न से वस्तु प्राप्त करके प्रयत्न से ही रक्षित की जाती है । गी० १.६६.६