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तुलसी शब्द-कोश
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मैसें : क्रि०वि० । जिस प्रकार से, यथा। 'सजन सगे प्रिय लागहिं जैसें ।' मा०
१.२४२.२ जैसे : (१) वि०पू०ब० । जिस प्रकार के । 'जैसे होत आए हनुमान के निवाजे
हैं।' हनु० १५ (२) जैसें । 'जैसे कोउ एक दीन दुखित अति ।' विन० १२३.३ जैसेहिं : जैप ही, जिस भी अवस्था में । 'जो जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं ।' मा०
७.३.७ जैसो : वि.पु.कए० (अ० जइसउ)। जैसा, जिस प्रकार का । जैसो तसो रावरो।'
दो०८४ जहउँ : आ०भ० उए । जाऊँगा-गी। 'कब जहउँ दुख सागर पारा।' मा० १.५६.१ हसि : आ०म०मए । तू जायगा (मिट जायगा)। 'जैहसि ते समेत परिवारा।'
मा० १.१७४.२ बहहि : आ.प्रब० भ० । जायँगे । 'न त मारे जहहिं सब राजा ।' मा० १.२७१.५ जैहैं : जैहहिं । (१) वे जायेंगे । 'अनुज सखा सिसु संग ले खेलन जैहैं।' गी०
१.२२.१३ (२) उब० । हम जायँगे । मा० ४.२६.६ है : आ०भ०ए० । (१) जायगा-गी। 'कहिबे कछुकछू कहि जैहै।' कृ० ४७
(२) मिटेगा-गी। राम नाम जपे जैहै जिय की जरनि ।' विन० २४७.१
(३) बिगड़ेगा । 'मेरो कहा है।' कवि० ६.११ जहौं : जैहउँ । उर लाइ वारने जैहों ।' गी० १.८.२ जोंक : संस्त्री० (सं० जलौका) । जल-जन्तु विशेष जो चिपक कर रक्त चसता
है। 'जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।' मा० १.५.५ जो : (१) सर्वनाम-कए । 'गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ।' मा० १.१.८
(२) जौं । यदि । 'स्याम बियोगी ब्रज के लोगनि जोग जोग जो जानी। कृ० ३५ (३) यतः, जिससे । 'ग्लानि जिय जोहो जो न लागै मुहें कारिखी।'
कवि० १.१५ जोइ : (१) (जो+इ) । जो भी, जो कुछ । 'मागहु बर जोइ भाव मन ।' मा०
१.१४८ (२) पूकृ० । देखकर । 'सम भयो ईस आयसु.. जोइ।' गी० ५.५.३
(३) आ०-आज्ञा-मए । तू देख । 'तिमि प्रपंच जिय जोइ ।' मा० २.६२ जोडऐ : आ०कवा०प्रए । देखिए । 'जानें जानन जोइऐ।' दो० ६८ जोइहि : आ०भ०प्रए । देखागा-गी। 'जननी जिअत वदन बिधु जोइहि ।' मा०
२.६८.८ जोई : (१) भूकृ०स्त्री० । देखी । 'भरी क्रोध जल जाइ न जोई।' मा० २.३४.२
(२) जोइ । जो । 'अगुन अरूप अलख अज जोई।' मा० १.११६.२