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तुलसी शब्द-कोश जाचिए, ये : आ०-कवा०-प्रए । प्रार्थित किया जाय। 'जांचिये गिरिजापति ___ कासी।' विन० ६.१ जाँची : भूकृ०स्त्री० । मांगी। 'आयसु जाँची जननि ।' गी० २.११.३ जाँचौं : आ०उए० । माँगू, मांगता हूं। 'जाँचौं जल जाहि, कहै, अमिअ पियाउ
सो।' विन० १८२.३ जा : (१) 'ज' सर्वनाम का रूपान्तर। जिस जो। 'जा बस जीव परा भवकूपा ।'
मा० ३.१५.५ जा के, जासों, जा तें, जाहि, जा की, जा को आदि में परसर्ग सहित प्रयोग में द्रष्टव्य हैं। (२) (समासान्त में) वि०स्त्री० (सं०) । उत्पन्ना । 'बिस्नु पद सरोज-जासि ।' विन० १७.१ । पुत्री। 'बाम दिसि
जनकजा ।' विन० ५१.६ /जा जाइ, ई : (१) (सं० याति>प्रा० जाइ) आ०प्रए० । जाता है । 'जाइ
मृग भागा। मा० १.१५७.४ (२) कर्मवाच्य सूचक प्रयोग-सकता है । 'सदा एकरस बरनि न जाई ।' मा० १.४२.८ (३) बीतता है । 'एकनिमेष बरष सम जाई।' मा० २.१५८ ३ (४) पहुचता है । 'ताहि तहाँ ले जाइ ।' मा० १.१५६ (५) (सं० जायति-जै क्षये>प्रा० जाइ)। समाप्त होता-ती है, मिटता-ती है। 'जिय के जरानि न जाइ ।' मा० २.१८२ (६) (सं० याति-या प्रापणे> प्रा० जाइ) पाता है । 'आत्माहन गति जाइ।' मा० ७.४४ (७) (सं० जायते
>प्रा० जाइ) पैदा होता-ती है । 'दरार न जाई।' गी० ६.६.३ जाइँ : क्रि०वि० । जिससे । 'सकुच स्वामि मन जाइँ न पावा ।' मा० २.२६६.७ जाइ : पूकृ० । जाकर (जा के सभी अर्थ यथावसर)। 'सुरपति सभाँ जाइ सब
बरनी।' मा० १.१२७.३ जाइअ : आ० भावा० । जाइए , जाना चाहिए । 'जाइअ बिनु बोलेहुं न सँदेहा।'
मा० १.६२.५ जाइहि : आ०भ०प्रए०। (१) जायगा-गी। 'न जाइहि काऊ।' मा० २.३६.५
(२) जाना चाहिए । 'चौथे पन जाइहि नृप कानन ।' मा० ६.७.३ (३) जा सकेगा । 'नाथ वेगि पुनि जाति न जाइहि ।' मा० ६.७५.५ (४) मिटेगा।
'जाइहि सुनत सकल संदेहा ।' मा० ७.६१.८ जाई : भूकृ०स्त्री०ब० । उप्पन्न हुई। 'उमा सैल गृह जाईं।' मा० १.६५ ७ जाई : (१) जाइ । 'गदगद कंठ न कछु कहि जाई ।' मा० १.७२.७ (२) जाइअ ।
जाया जाय । 'कहाँ जाई का करी।' कवि० ७.६७ (३) जाइ । जाकर । 'बैठे मुनि जाई ।' मा० १.१३४.१ (४) जाइहि 'राम स्याम सावन भादो बिन जिय के जरनि न जाई ।' कृ० २६ (५) भूकृस्त्री० (सं० जाता>प्रा० जाया
=जाई) । उत्पन्न हुई । 'जाई राजघर ब्याहि आई राजघर माह ।' कवि० २.४