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________________ 322 तुलसी शब्द-कोश जथाजोग : क्रि०वि० (सं० यथायोग्य>प्रा० जहाजोग्ग)। योग्यतानुसार । 'जथा जोग सनमानि प्रभु ।' मा० २.१३४ (२) यथोचित । जथाजोगु : जथाजोग (सं० यथायोग्यम् >प्रा० जहाजोग्गं>अ० जहाजोग्गु) । 'जथाजोगु निज कुल अनुहारी ।' मा० १.२२४.७ जथाथिति : क्रि०वि० (सं० यथास्थिति)। स्थिति के अनुरूप; जैसा था वैसा, पूर्ववत् स्थिति में । 'भयउ जथाथिति सब संसारू ।' मा० १.८६.२ जथाबिधि : क्रि०वि० (सं० यथाविधि) । विधिपूर्वक, विधान के अनुसार । 'मिले जथाबिधि सबहि प्रभु । मा० १.३०८ जथामति : क्रि०वि० । बुद्धि के अनुसार । मा० २.२७२.१ जथारथ : क्रि०वि० (सं० यथार्थ) । अर्थ के अनुसार, जैसा अर्थ है उसी के अनुरूप । 'बोध जथारथ बेद पुराना।' मा० ३.४६.५ जथारथु : जथारथ । तत्त्वतः, वस्तु स्वभाव के अनुसार, यथार्थतः । 'नीति प्रीति , परमारथु स्वारथ । कोउ न राम सम जान जथारथु ।' मा० २.२५४.५ जथारुचि : क्रि०वि० । रुचि के अनुरूप । 'अबिनय बिनय जथारुचि बानी ।' मा० २.३००.८ जथालाभ : क्रि०वि० । जितना मिले उतने में ; लाभ के ही अनुसार । 'जथालाभ संतोषा।' मा० ३.३६.४ जथाश्रुत : क्रि०वि० (सं० यथाश्रुत) । (१) आगमों के अनुसार (२) जैसा सुना है उसी के अनुसार । 'तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी।' मा० १.११४.५ जथोचित : जथाजोगु (सं० यथोचित) । जैसा उचित हो तदनुसार । 'सबहि जथो चित आसन दीन्हे ।' मा० ११००.१ जदपि : क्रि०वि० अव्यय (सं० यदपि, यद्यपि) । मा० १.१५०.५ जदु : सं०० (सं० यदु) । यादवों के पूर्वपुरुष =ययाति के पुत्र जिनके वंश में कृष्ण ने अवतार लिया था । मा० १.८८.१ जदुनाथ : यादवों के स्वामी+यदुवंश में श्रेष्ठ = श्रीकृष्ण । जदुराइ, ई : (दे० राई) । यदुराज श्रीकृष्ण । कृ० १ अद्यपि : जदपि । मा० १.२६४.२ जन : सं०० (सं.) (१) लोग। 'जोगिजन' - मा० २.२७६ छं० (२) भक्त, दास । 'कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं।' मा० १.१२२.१ जन, जनइ : (सं० जनयति>प्रा० जणइ-उत्पन्न करना, प्रादुर्भूत करना) आ० प्रए । जनन करता है । 'जो फल चारि चार्यो जन ।' गी० ५.४०.१ जनक : वि०+सं० (सं०) । (१) उत्पादक । 'तुम्ह ब्रह्मादि जनक जग स्वामी ।' मा० १.१५०.६ (२) पिता। 'जननी जनक बंधु सुखदाता।' मा० २.४३.३
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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