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तुलसी शब्द-कोश
_321 जठोरि, री : वि०स्त्री० (सं० ज्येष्ठतरा>प्रा. जेट्टयरी), श्रेष्ठ तथा वय में ___ बड़ी । 'बिप्रबधू कुलमान्य जठेरी ।' मा० २.४६.३ जठेरिन्ह : जठेरि+संब०। वयस्काओं (ने) । बड़ी-बूढ़ो स्त्रियों ने । 'जरठ
जठेरिन्ह आसिरबाद दये हैं।' गी० १.११.४ । जड़ : (१) वि०+सं० (सं.)। स्थिर, गतिहीन । कृ. २४ (२) मूर्ख । 'छीनि
लेइ जानि जानि जड़।' मा० १.१२५ (३) अचेतन तत्त्व । 'जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार ।' मा० १.६ (४) महाभूत-पृथ्वी, जल, तेज,
वाय, आकाश । 'जड़ पंच मिल जेहिं देह करी।' कवि० ७.२७ जड़ता : सं०स्त्री० (सं.)। कठोरता, अचेतनता । मा० १.२५८.७ जड़ताई : जड़ता से, व्यामोहवश । 'अपनी जड़ताई-तुम्हहि सुगाइ ।' मा०
२.१८४.६ जड़ताई : जड़ता । मा० १.७८.४ जड़न्त : जड़+संब० । जड़ तत्त्वों। 'जहँ असि दसा जड़न्ह के बरनी।' मा०
१.८५३ जड़मति : वि० (सं०) । मूढ़बुद्धि, दुर्बुद्धि । मा० ६.१०१ क जड़हि : जड़ को, अचेतन को। 'जड़ हि करइ चैतन्य ।' मा० ७.११९ख जत : वि.पु । जितना, जितने । 'जड़ चेतन जग जीव जत ।' मा० १.७ग जतन : सं०० (सं० यतन, यत्न)। (१) उपाय । ' नाम निरूपन नाम जतन तें।'
मा० १.२३.८ (२) प्रयास । 'करि देखा हर जतन बहु ।' मा० १.६२ (३) युक्ति । 'करौं जादू सोइ जतन बिचारी।' मा० १.१३१.७ (४) साधना ।
'जेहि कारन मुनि जतन कराहीं।' मा० १.१४६.४ जतनु : जतन+कए० । 'करेहु जाइ सोइ जतनु बिचारी ।' मा० १.५२.३ जति, ती : (१) सं०० (सं० यति) । संयमी, योगी। 'जतिहि अबिधा नास ।'
मा० २.२६ (२) सं०स्त्री० (सं० यति)। विराम, सीमा। 'जंघा कदली
जाति ।' गी० ७.१७.४ जतिन्ह : जाति+संब० । यतियों, योगियों। 'दंड जतिन्ह कर भेद जहँ ।' मा.
७.२२ जती : जति । योगी । 'सोचिअ जती प्रपंचरत ।' मा० २.१७२ जत्रु : सं० (सं.)। गले की दो हड्डियां जिन्हें हँसुली कहते हैं । 'गूढ जत्रु बनि पीन
अंस तति ।' गी० ७.१७.१० जथा : अव्यय (सं० यथा)। जिस प्रकार, जैसा, जैसे । 'जथा बंस ब्यवहारु ।' मा०
१.२८६ (२) समान । 'सोउ सर्बग्य जया त्रिपुरारी।' मा० १.५१.१