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तुलसी शब्द-कोश
छोहि. ही : आ.प्रब० (सं० छिद्यन्ते, क्षीयन्ते>प्रा० छिज्जति>अ० छिज्जहिं)।
कटते-मिटते हैं । 'छीजहिं निसिचर दिन अरु राती।' मा० ६.७२.३ छीजे, जे : छी जइ । (१) विच्छिन्न हो (सं० छिद्यते । 'जेहिं छोज निमिचर सम
दाई।' मा० ६.७५.६ (२) क्षीण हो (सं० क्षीयने) । 'मज्जन करिअ समरश्रम छोजे ।' मा० ६.११६.५ (३) क्षीण+विछिन्न हो । 'प्रौढ अभिमान चितष्टत्ति
छीजै ।' वि०न ४७२ छोट : सं०स्त्री० । छींट, बूदों की श्रेणी। 'श्रोनित छीट छटानि जटे ।' कवि०
छोन : वि०पू० (सं० क्षीण, छिन्न >प्रा० क्षीण, छिन्न) । दुर्बल तथा विच्छिन्न = ___व्यग्रचित्त । 'छधा छीन बलहीन सुर ।' मा० १.१८१ छीनत : व०कृ००। दूसरे से बलात् लेते; छीनते, झपट लेते । खेलत खात
परसपर डहकत छीनत ।' कृ० १६ छीनता : सं०स्त्री० (सं० क्षीणता+छिन्नता)। अल्पता+नाश । 'सुमिरत होत
कलिमल छल छीनता।' विन० २६२.५ छीना : छीन । रहित, शून्य । 'उदासीन सब संसय छीना ।' मा० १.६७.८ छोनि : पूक० । छीन कर, झपट-लेकर । 'एक ते एक छीनि लै खाहीं ।' मा०
६८८.२ छीनी : भूकृ०स्त्री० । छीन ली, बलात् स्वायत् कर ली। 'दामिनी की छबि छीनी।' गो० १.४४.१ छीने : भकृ०० । (१) छीने हुए, झपटकर स्वायत्त किए हुए । 'लेत जनु छीने ।'
मा० २.११८.७ (२) छीने हुए, क्षीण किये हुए । 'बिकल मनहुं माखी मधु छीने ।' मा० ७६.४ (३) काट दिए, छिन्न कर दिये । 'राम बहोरि भुजा सिर
छीने ।' मा० ६६.११ छोबो : भक०कए० (सं० छोप्तव्यम>प्रा० छिविअव्वं>अ० छिविअव्वउ)।
छूना, स्पर्श करना। 'भलो न भूमि पर बादर छीबो ।' कृ. ६ छोर : सं०० (सं० क्षीर) । दूध । मा० २.६१.१ छोरनिधि : छीर सागर । छोरसागर : सं०० (सं० क्षीरसागर)। पुराण प्रसिद्ध समुद्र विशेष जिसमें जल
के स्थान पर दूध माना गया है और जिसमें प्रलय में विष्णु शयन करते हैं ।
मा० १.०.३ छोरसिंधु : छीरसागर । मा० २.२३१ छोरु : छीर+कए । दूध । मा० २.१५१.२