________________
तुलसी शब्द-कोश
289 चितरें : सं०० कर्त कारक (सं० चित्रकरेण>प्रा० चित्तयरेण>अ० चित्तयरें)।
चित्रकार द्वारा । 'चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें।' मा० १.२१३.५ चितेरे : (१) सं००ब० (सं० चित्रकरा:>प्रा० चित्तयरा)। चित्रकार ।
(२) वि.पुब. (सं० चित्रीकृता>प्रा० चित्तयरिया)। चित्रित, चित्र में
उरेहे हुए । 'रहे नर नारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।' कवि० २.१४ चितेरो : सं०+वि.पु.कए० (सं० चित्रकर:>प्रा० चित्तयरो)। चित्रकार ।
पिय चरित सिय चित चितेरो लिखत नित हित भीति ।' गी० ७.३५.४ चित : (१) चितइ । देखकर। 'सैल सिखर चढ़ि चित चकित चित अति हित बचन ___ कह्यो बल भैया ।' कृ० १६ (२) आ०-आज्ञा-मए० । तू देख । 'प्रात काल
रघुबीर बदन छबि चितै चतुर चित मेरे ।' गी० ७.१२.१ चिते हैं : आ.भ.प्रब० । देखेंगे । 'बार-बार प्रभु तम्हहि चित हैं।' गी० ५.५१.६ चितहौं : आ०भ० उए० । देखूगा । 'भूलि न रावरी ओर चितहौं ।' कवि० ७.१०२ चितही : आ०भ०मब० । देखोगे । 'रघुबीर मोहू चितैहो ।' विन० २७०.१ । चितौ : आ० आज्ञा-मए । तू देख । 'नेकु सुमुखि चितलाइ चितो री।' गी०
१.७७.१ चित्त : सं०० (सं.)। अन्तःकरण =संकल्पात्मक मन, अभिमानात्मक अहंकार
और निश्चयात्मक बुद्धि का समवेत सम स्वरूप । शैवदर्शन में चित्त प्रकृति पर्याय है जो उक्त तीनों की साम्यावस्था है-तीनों अन्तःकरण चित्त में एकीभूत रहते हैं; विषय की प्रतिक्रिया के रूप में तीन व्यापार हो चलते हैं जो मन, अहम् और बुद्धि कहलाते हैं जो क्रसशः राजस, तामस तथा सात्त्विक हैं ।
'अहंकार सिव, बुद्धि अज, मन ससि, चित्त महान् ।' मा० ६.१५ क चित्तनि : चित्त+सं०ब० । चित्तों (में) । हनु० ४ । चित्र : (१) सं०० (सं.)। आलेख्य । मा० १.२६० (२) आश्चर्य, विस्मयपूर्ण
दश्य । 'खगमग चित्र बिलोकत बिच-बिच ।' गी० १.५५.५ (३) वि० ।
चित्रपर्ण, विविध रंगों से युक्त । 'चित्र चारु चौंके रचीं।' गी० १.६.७ चित्रकूट : सं०० (सं०) । विविध रंगों से युक्त विस्मयजनक शिखरों वाला=
पर्वत विशेष । मा० १.३१ चित्रकेतु : एक निशाचर का नाम । मा० १.७६.२ चित्रलिखित : चित्र में बनाया हुआ। 'चित्रलिखित कपि देखि डेराती।' मा०
२.६०.४ चित्रसार : चित्रसाला । कवि २.१४ चित्रसाला : सं०स्त्री० (सं० चित्रशाला) । वह शाला जिसमें चित्र बने हों। मा०
७.२७