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तुलसो शब्द-कोश
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चाहउ': (दे० चाह) आ०ए० । चाहता-ती-हूं । 'चाहउँ तुम्हहि समान सुता'
मा० १.१४६ चाहत : वकृ००। चाहता-ते । (१) इच्छा करता। 'बैठो सकुचि साधु भयो
चाहत ।' कृ० ३ (२) स्नेह करते । जेहि चाहत नर नारि सब ।' मा० २.५२ (३) संभावित या आशङिकत होता । 'सोहिं, चाहत होन अकाजू ।'
मा० २ २६५.१ चाहति : चाहत+स्त्री० । 'चरन कमल रज चाहति ।' मा० १.२१० चाहन : भकृ० अव्यय । खोजने । 'फल चाहन चली।' गी० ३.१७.१ चाहसि : आ०भए० । तू चाहता है । 'जौं चाहसि उजिआर ।' मा० १.२१ चाहहिं : आ० प्रब० । चाहते हैं। (१) इच्छा करते हैं। 'राम कीन्ह चाहहिं सोइ
होई ।' मा० १.१२८.१ (२) देखते हैं। 'मधुर मनोहर मूरति चाहहिं ।' जा०
मं० २० चाहतु : आ०मब० । चाहते या चाहती हो। 'चाहहु सुन राम गुन गूढा ।'
मा० १.४७.४ चाहा : (१) चाह । 'हरिपद बिमुख परम गति चाहा।' मा० १.२६७.४
(२) चाहइ । इच्छा करता है । जिमि पिपीलिका सागर थाहा । महा मंदमति पावन चाहा।' मा० ३.१.६ (३) भूकृ.पु । इच्छा की। 'कथा आरंभ करें सोइ चाहा ।' मा० ७.६३.५ (४) देखा (सतृष्ण अवलोकन किया) । ‘सीय
चकित चित रामहि चाहा ।' मा० १.२४८.७ चाहि : (१) चाह । 'जाके मन ते उठि गई तिल-तिल तुस्ना चाहि ।' वैरा० २६
(२) पूक० । देखकर । 'लेहि दस सीस अब बीस चख चाहि रे ।' कवि०
५.१६ (३) तुलना में लेकर, अपेक्षाकृत । 'कुलिसटु चाहि कठोर अति कोमल __ कुसुमहुं चाहि ।' मा० ७.१६ ग चाहिम (य) : चाहिऐ । अभीष्ट है । 'चाहिअ सदासिवहि भरतारा।' मा० १.७८.७ चाहिऐ, ये : आ०कवा०प्रए । अभीष्ट है, अपेक्षित होता है । 'मुखिआ मुख सो
चाहिए।' मा० २.३१५ चाही : चाहि । (१) देख कर । 'अस मानस-मानस चख चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल
अवगाही।' मा० १.३६.६ (२) तुलना में लेकर (अपेक्षाकृत)। 'मरनु नीक
तेहि जीवन चाही ।' मा० २.२१.२ चाहु : आ० आज्ञा– भए । तू चाह, देख । 'चारि परिहरें चारि को दानि चारि
चख चाहु ।' दो० १५१ चाहें : देखने से, देख कर । 'चकोट चाहें, हहरानी फौज महरानी जातुधान की।'
कवि० ६.४०