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तुलसी शब्द-कोश
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प्रकार की लकड़ियों से जोड़ गाँठ कर बनाया खटोला टिकाऊ नहीं होता, उसी
प्रकार पांच महाभूतों और तीन अन्तःकरणों से रचा हुआ शरीर अस्थायी है। अठारह : संख्या (सं० अष्ठादश <प्रा० अट्ठारह) । मा० ५.५५.३ अढ़ाई : (सं० अर्ध तृतीय>प्रा० अड्ढाइज्ज) वह संख्या जिस में दो पूरे और तीसरे
का आधा हो । मा० २.२७८.६ अढ़क : सं०० । ठोकर । 'फोरहिं सिल लोढ़ा सदन लागें अढ़ क पहार ।'
दो० ५६० अढ़ कि : पूकृ० । लड़खड़ाकर, ठोकर खाकर । 'अढ़ कि परहिं फिरि हेरहिं पोछे ।'
मा० २.१४३.६ अतनु : वि० (सं०) शरीर-रहित अनङ्ग । रति अति दुखित अतनु पति जानी।'
मा० १.२४७.५ प्रतळ : वि० (सं.) तर्कशक्ति से अज्ञेय; बुद्धि की युक्तियों से परे; अतीन्द्रिय । ___'राम अतयं बुद्धि मन बानी।' १.१२१.४ अति : अव्यय (सं०) अतिशय, अधिक, अत्यन्त । रति अति दुखित अतनु पति
जानी।' मा० १.२४७.५ ऐसे स्थलों में प्रायः अर्थ की अतिक्रान्त दशा का
आशय रहता है। अति उकुति : सं० स्त्री० (सं० अत्युक्ति) । एक काव्यालंकार जिसमें शोर्य तथा
उदारता आदि का अद्भुत रूप से वर्णन किया जाता है। मा० ६.२.१-४ प्रतिकल्प : वि० (सं.) (१) कल्पनातीत, अप्रमेय (2) कल्पातीति =युग, कल्प
आदि कालसीमाओं से परे कालातीत । विन० ५४.६ अतिकाय : वि०+सं०० (सं)। (1) बड़े डील डोल वाला (2) एक
राक्षस-यूथप का नाम । मा० १.१८० अतिकाया : अतिकाय । मा० ६.४६.१० अतिकाल : वि. (सं०- अतिक्रान्त: कालम् ) कालातीत, कालजयी, काल से परे ।
विन० ११.७ अतिथि : सं (सं०) वह अभ्यागत जिसके आने की तिथि पूर्व निश्चित न हो।
मा० १.३२.८ अतिबल : वि० (सं०) अतिशय बली । मा० १.१८०.३ अतिबलो : कए । गी० ५.४२.१ प्रतिरोषी : अत्यन्त क्रोधी। मा० १.१७१.६ अतिसय अतिस : क्रि०पि० (सं० अतिशय) अत्यन्त । मा० १.१८.७, विन० ८६.४ अतीत : वि० (सं०) अतिक्रान्त, परे । 'गिराज्ञान गोऽतीतम् ।' मा० ७.१०८.३ अतीति : वि० स्त्री० (सं० अतीता)। बीती। 'बड़ि बय बथहि अतीति ।'
विन० २३४.२