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तुलसी शब्द-कोश
अजे : वि० पु. (सं० अजेय) जो जीता न जा सके । 'रघुबीर महारनधीर अजे।'
मा० ७.१४.१७ अजे : अजय । 'अतिस प्रबल अजै ।' विन० ८६.४ अजोध्या : अवध । मा० ७.२७.२ इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि का उपनाम 'अयोध्या'
था, उन्होंने पुरी बसाई थी अतः 'अयोध्या' नाम पड़ा-दे० हरिवंशपर्व । अटक : सं० सभी० । गतिरोध, रोकटोक, बाधा। को कर अटक कपि कटक
अमरषा।' कवि० ६.७ अटक, अटकइ : <सं० आटकते-टकि बन्धने । बंधना, संलग्न होना। आ..
प्रए । अटकता है, लगता है, लग जाय । 'जब मति यहि सरूप अटक' विन..
६३.६ अटत : पु० (सं० अटत्-अटगतो) चलता, चलते। खोज में भ्रमण करते ।
'अटत गहन बम अहन अखेटकी।' कवि० ७.६६ विशेषतः पैदल तथा खोज (या साक्ष्य पाने) हेतु यात्रा का अर्थ आता है-भिक्षारन, तीर्थाटन आदि।
'सुतीरथ अटत ।' विन० १२६.३ अटन : सं० पु. (सं.) पर्यटन, भ्रमण । 'अटन पयादे ।' मा० २.३११.३ अटनि : अट्टों-अटालों पर । गी० १.५:१ अटनु : ‘अटन'+कए। पैदल भ्रमण । 'अटनु रामगिरि बन तापस थल ।'
मा० २.२८०.७ अटन्ह =अटनि । अटालों । 'प्रगटहिं दुरहिं अटन्ह पर भामिनि ।' मा० १.३४७.४ अटपटि : वि० समी० । दुर्बोध, विसंगत, विचित्र । 'अटपटि बानी।' मा०
१.१३४.६ अटपटे : वि० पु (बहु०) । विचित्र, व्यङ्गययुक्ता। 'प्रेम लपेटे अटपटे ।'
मा० २.१०० अटल : वि० (सं०-टल वैलव्ये) अविकल, अविचल । कवि० ६.४७ अटपी : सं० समी० (सं०) वन । विन० ५२.७ अटारिन्ह : अटारियों (पर)। मा० १.३०१.४ अटारी : (१) सं० स्त्री० बहु० (सं० अट्टालिकाः) अटारियां, छतें, छतों पर बनी
शालायें । 'जातरूप मनि रचित अटारी ।' मा० ७.२७.३ (२) अटाली पर ।
'निबुफि चढ़ेउ कपि कनक अटारी।' मा० ५.२५.६ अट्टहास : सं० पु० (सं.) ठहाका लगाकर हंसने की क्रिया । मा० ६.४०.४ अठक : वि० सं० अष्ट-काष्ट>प्रा० अट्ठ-कट्ठ) आठ काठों से बना, अनमेल,
अस्थायी। 'बांस पुरान साज' सब'मछकठ। विन० १८९२ जिस प्रकार कई