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तुलसी शब्द-कोश
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चलतो : क्रियाति० पु एक. यदि चलता.. तो । 'जों हौं प्रभु आयसु ले चलतो।" ____गी० ५.१३.१ चलदल : संपु० (सं.)। चञ्चल पत्तों वाला=पीपल वृक्ष । गी० १.६६.३ चलन : सं०० (सं.)। चलना । 'प्रान नाथ चाहत चलन ।' मा० २.१४६ चलनि, नी : सं०स्त्री० । चलने की क्रिया या रीति । 'राम बिलोकनि बोलनि
चलनी।' मा० ७.१६.४ चलनु : चलन+कए० । चलना । 'प्रान' 'चलनु चहेरी।' गी० ५.४६.३ चलनो : चलनु । 'चलनो अब केतिक ।' कवि० २.११ चलब : भूक.पु । चलना (पड़ेगा)। 'चलब पयादेहिं बिनु पदत्राना।' मा०
२.६२.५ (२) चलना (होगी-चलेंगे) । 'जों न चलब हम कहें तुम्हारें।' मा०
१.१६६.७ चलहि, हीं : आ०प्रब० (सं' चलन्ति>प्रा० चलंति>अ० चलहिं)। चलते हैं।
'ठुमुक-ठुमम प्रभु चलहिं पराई ।' मा० १.२०३.७ (२) विचलित होते या
डिगते हैं । 'परम धीर नहिं चलहिं चलाए ।' मा० १.१४५.३ चलहिंगे : आ०भ००प्रब० । चलेंगे । 'बाहु जोरि कब अजिर चलहिंगे।' गी०
२.५५.४ चलहु : आ०मब० (सं० चलत>प्रा० चलह>अ० चलहु) । चलो। 'बेगि चलहु
सुनि सचिब जोहारे ।' मा० २.१८८.४ । चला : भूकृ०० (सं० चलित>प्रा० चलिअ)। मा० १.१७१.६ चलाइ : पू० (सं० चालयित्वा>प्रा० चलाविअ>अ० चलावि) । चला (कर)।
'दीन्हेहु कटकु चलाइ ।' मा० २.२०२ चलाइहि : आ० भ०प्रए । (सं० चाल.ष्यियति>प्रा० चलाविहिइ) । चलाएगी।
'अरुंधती मिलि मैनहि बात चलाइहि ।' पा०म० ७६ चलाई : (१) चलाइ । 'जल भाजन सब दिए चलाई।' मा० २.३१०.१ (२) भूकृ०
स्त्री० । चालित की, फेंकी। 'बान संग प्रभु फेरि चलाई।' मा० ६.६१.४ (३) चालू की, आरम्भ कर दी, प्रचारित की। 'कायर कोटि कुचालि चलाई।' कवि० ७.१३० (४) मुद्रा चालू की। 'नाम राम रावरो तो चाम की चलाई
है।' कवि० ७.७४ चलाए : भूकृ.पु.ब. (सं० चालित>प्रा० चलाविय)। मा० १.१४५.३ चलाकी : सं०स्त्री० । चालूपन, कुटिल चातुरी । 'ये अब लही चतुर चेरी 4 चोखी
चालि चलाकी ।' कृ० ४३ । संस्कृत में चलाक प्रचलाक मोर या सर्प को कहते हैं अतः मोर के समान मधुर वाणी के साथ सर्प भक्षण का क्रूर व्यवहार तथा सर्प के समान गुप्त-विषतुल्य आचरण 'चलाकी' है ।