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तुलसी शब्द-कोश
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गुनह : सं०० (फा० गुनाह ) । अपराध, दोष । 'गुनह लखन कर हम पर रोषू।'
मा० १.२८१.५ गुनहिं : गुणों में । 'जब तजि दोष गुनहिं मनु राता ।' मा० १.७.१ गुनहु, हू : आ०मब० (सं० गुणत>प्रा० गुणह>अ० गुणहु) । समझो, मानो। ___ 'जनि मन गुनहु मोहि करि कादर ।' मा० ६.६.७ गुनाकर : गुणों की खानि; गुणपूर्ण । मा० १.१७.८ गुनागार : गुनधाम । मा० ३.४६ गुनानीत : वि० सं० गुणातीत) । माया के त्रिगुण से परे। 'गुनातीत सचराचर
स्वामी ।' मा० ३.३६.१ गुनानी : गुन+कब० (सं० गुणा:>प्रा० गुणाणि)। गुण समूह । 'राम अनंत
__ अनंत गुनानी ।' मा० ७.५२.३ गुनि : पूव० (सं० गुणित्वा>प्रा० गुणिअ>अ० गुणि)। (१) सोच बिचार करके।
‘सुनि गुनि कहत निषादु ।' मा० २.२३४ (२) गणना में गुणनफल निकाल
कर । 'हनत गुनत गनि गुनि हनत जगत जोतिषी काल ।' दो० २४६ गुनिप्र : गुनिए । 'देखिअ सुमिअ गुनिअ मन माहीं।' मा० २.६२.८ गुनिए : आ० कव०प्रए० (सं गुण्यते>प्रा० गुणीअइ) । विचारिए, समझिए । 'मेरे ___ जान और कछु न मन गुनिए।' कृ० ३७ गनित : वि० (सं० गुणित) । गुना । 'कोटि गुनित ।' गी० २.६.१ गुनिन्ह : गुनी+संब० । गुणीजनों (से) । 'पूंछेउँ गुनिन्ह रेखतिन्ह खाँची।' मा०
२.२१.७ गुनय, ये : गुनिअ, गुनिए। गुनिहि : गुणी को। गनिहि गुनिहि साहिब लहै ।' विन० २७४.२ गुनी : (दे० गुन) वि०० (सं० गुणिन्) । (१) गुण युक्त। मा० ३.२१.११
(२) भूकृ०स्त्री० । समाकी, सोच-बिचार ली । 'नीकें मन गुनी मैं ।' कवि.
७.२१ गुनु : गुन +कए । (१) विशेषता+(२) डोरी । 'नाथ एक गुनु धनुष हमारें।'
मा० १.२८२.७ गुपुत : गुप्त । 'गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ।' मा० १.१.८ गुप्त : भूकृ०वि० (सं.)। छिपा हुआ (रक्षित) ; निगूढ । 'गुप्त रूप अवतरेउ मेभु ।' मा० १.४८ क गुमान : सं.पु. (फा० गुमान् = शक) । सन्देह । 'ग्यानी भगत सिरमनि त्रिभुवन
पति कर जान । ताहि मोह माया नर पावर करहिं गमान ।' मा० ७.६२ क इसका अभिमान अर्थ में भी हिन्दी प्रयोग होता है ।