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________________ तुलसी शब्द-कोष 177 कुबस्तु : अग्राह्य वस्तु । मा० १.७ क कुबानि : (१) अनुचित वाणी। 'मन मानि गलानि कुबानि न मूकी।' कवि० ७.८८ (२) कलुषि स्वभाव गहित प्रकृति । कृ० २७ कुबामा : असभ्य स्त्री, संस्कारहीन जंगली स्त्री । मा० २.२२३.७ कुबासना : कलुष विषयवासना ने, पापामय इच्छा ने । 'करम् उपासना कुबासना न सायो ग्यानु ।' कवि० ७.८४ कुबिचारी : कलुषित विचारों वाला। मा० १.८.१० कुबिहग : हिंसक पक्षी । मा० २.२८.८ कुबुद्धि : (१) वि० (सं०) । दुष्ट बुद्धि बाला, वाली। 'करइ बिचारु कुबुद्धि ___ कुजाती।' मा० २.१३.३ (२) सं० स्त्री० (सं०) । दुबुद्धि, कलुषित बुद्धि । ___ 'मठि कुबुद्धि धार निठुराई।' मा० २.३१.२ कुबुद्ध : कुबुद्धि+सम्बोधन ए० । ह्य दुर्बुद्धि । मा० ६.६४.५ कुबेर : सं०पू० (सं०)। यक्षों का राजा रावण का वैमात्र अग्रज। मा० १.१७६.८ कुबेरै : कुबेर को। 'कृपानिधी को मिलौं 4 मिलि के कुबेरै।' गी० ५.२७.१ ।। कुबेलि : (दे० बेलि) । विषफल आदि की लता, कुत्सित लता । 'कुल कुबेलि ___ कैकेई ।' गी० २.१०.२ कुबेष (षा) : (१) सं०पु० । कुत्सित वेष, अभव्य रूप रचना । 'किएहुं कुबेष साध सनमानू ।' मा० १.७.७ (२) वि० । कुत्सित वेष वाला। 'निर्गुन निलज कुबेष कपाली।' मा० १.७६.६ कुबेषता : सं० स्त्री० । कलुष वेष युक्त का आचरण, कुत्सित वेष की स्थिति । __'कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी।' मा० २.२५.७ कुबेषु, पू : कुबेष+कए । अशुभ वेष । 'बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषु ।' मा० २.२६.७ कुबोल : कड़वा बोल । दो० ४६६ कुब्याज : कुत्सित ब्याज (सूद); चक्रवृद्धि से लगने वाला बड़ा ब्याज जो मूलधन से भी अधिक होकर दिया न जा सके । दो० ४७८ कुभाँति, ती : वि०+क्रि०वि० । (१) प्रतिकूल रीति से, विपरीत रीति वाला। अनुचित, अननुरूप । 'रामु कुभांति सचिव सँग जाहीं।' मा० २.३६.८ (२) अस्वाभाविक, अवसर-विरुद्ध, रीति-विपरीत । 'प्रिया बचन कस कहसि कुभांतो।' मा० २.३१.५ (३) अमङ्गल, अशुभ । 'रटहिं कुभांति कुखेत करारा ।' मा० २.१५८.४ कुमाउ, ऊ : (दे० भाउ) दुर्भावना, कलुषपूर्ण मनः स्थिति । मा० २.२५७
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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