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________________ 158 तुलसी शब्द-कोश काढ़ी : आ. मब० । निकालो। 'एक करै धौंज, एक कहैं काढ़ी सौंज।' कवि काढ़ यो : भूकृ०० कए० । निकाला, खींचा। ‘रोषि बानु काढ़ यो न दलैया दससीस को।' कवि० ६ २२ | कातरि : (१) वि०स्त्री० (सं० कातर)। दीन, विकल ।' देखि परम कातरि महतारी ।' मा० २.६६.१ (२) सं० स्त्री (सं० कर्तरी>प्रा० कप्तरी)। कृपाण । 'तोरि जम कातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी।' (दे० जम कातरि) हनु० २७ कातिबो : भकृ० पु० कए० । कातना (चर्खा या तकली से सूत निकालना)। 'करषि कातिबो नान्ह ।' दो० ४६२ कादर : वि.पु. (सं० कातर> शौरसेनी प्रा० कादर)। कायर, क्लीब, पौरुष ___ हीन । 'ननि मन गुनहु मोहि करि कादर ।' मा० ६.६.७ कान : सं०० (सं० कर्ण>प्रा० कण्ण) । श्रवण । मा० १.१५६.८ कानन : सं०० (सं.)। वन । मा० १.१६१ क काननचारी : वि.पु. (स.)। (१) वन में विचरण करने वाला । मा० ३.११.१८ (२) वन्य, जङ्गली (जीव) । 'धन्य विहगम्त्र कानन चारी ।' मा० २.१३६.२ काननि : कानन्हि काननु : कानन+कए० । अद्वितीय वन । 'सुन्दर गिरि काननु जलु पावन ।' मा० २.१२४.६ कानन्हि : कान+संब० । कानों (में) । 'कानन्हि कनक फूल छबि देहीं।' मा० १.२१६.७ काना : कान । मा० १.४.६ कानि, नी : सं० स्त्री० । (१) आदर, मान्यता । 'तू जो हम आदर्यो सोती नव कमल की कानि ।' कृ० ५२ (२) स्वाभिमान, प्रतिष्ठा । ‘रहइ न सीलु सनेहु न कानी ।' मा० १६२.२ ४ (३) साख प्रसिद्धि । 'कबि कुल कानि मानि सकुचानी ।' मा० २.३०३.७ काने : (१) कान+अधिकरण (सं० कर्णे>प्रा० कण्णे) । कान में । 'काने कनक तरीवन ।' रा०न० ११ (२) वि.पु०ब० (सं० काणाः) । एकाक्ष । 'काने खोरे कूबरे।' मा० २.१४ कान्ह : सं०पु० (सं० कृष्ण>प्रा० कण्ह) । अवतारी कृष्ण ।' हेरि कान्ह गोबर्धन चढ़ि गया।' कृ० १६ काम : (१) सं०० (सं.)। कामदेव+अन्तः शत्रु विशेष । मा० १.८४; १.३२.७ (२) काम सुख भोग, भोग विषय, काम वासना । किंकर कंचन कोह
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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