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________________ तुलसी शब्द-कोश 155 काउ, काऊ : अव्यय (सं० कदापि>प्रा० कआवि) । कभी । 'मोरे हृदय कृपा कसि काऊ।' मा० १.२८०.२ 'सन्मुख चितव कि काउ ।' मा० ६.६४ काक : संपुं० (सं०) । कौआ पक्षी। मा० ७.५४ काकपच्छ : सं०० (सं० का कपक्ष) । बालकों के (विशेषत: क्षत्रियों के) घुघराले केश जो कानों की ओर खिचे लटकते रहते हैं। काकुला । 'काकपच्छ घर, कर कोदंड सर ।' गी० १.५४.१ काकभुसुंड, डि, डी : काकविशेष जिसकी कथा उत्तरकाण्ड में है। काकसिखा : (सं० काकशिखा)=काकपच्छ । गी० १.६६.३ काकिनि, नी : संस्त्री० (सं० काकिनी, काकिणी)। कौड़ी। कवि० ७.१५५ काकु, कू : सं०स्त्री० (सं० काकु) । (१) परिवर्तित कण्ठध्वनि, ताना, भावावेश में बदले हुए स्वर से कथन ।' जारिउं जायें जननि कहि काकू ।' मा० २.२६१.६ (२) कहने की रीति जिससे विपरीत अर्थ व्यक्त होता है । 'कहियत काकु कूबरी हूं कौं, सो कुबानि बस नारी ।' कृ० २७ कावासोती : वि० (सं० कक्षाश्रोत्रिक>प्रा. कवखासोत्तिम) । एक ओर काँख के नीचे और दूसरी ओर कान के नीचे (कन्धे पर) धारण किया हुआ । 'पिअर उपरना काखसोती।' मा० १.४१ काग, गा : काका । मा० १.४१ कागद : सं० । काग़ज, पत्र । मा० १.६.११ कागभुसुडि : काकभुसुडि । मा० ७.५३.८ कागर : सं०० । पंख । कवि० २.२ काग : काग+कए। एक कौआ, कोई कौआ । 'बैनतेय बलि जिमि यह काग ।' मा० १.२६७.१ काचा : वि०पू० । कच्चा, कोमल । अपक्व । मा० ५.३७.१ काचे : 'काचा' का रूपान्तर । कच्चे । 'काचे घट जिमि डारौं फेरी।' मा० १.२५३.५ काचो : काचा+कए० । कच्चा (बिना पकाया हुमा) । 'सहबासी काचो गिलहिं ।' दो० ४०४ काछिस : आ०-कर्मवाच्य-प्रए० । पहना जाए, परिधान सजाया जाय । 'जस काछि. तस चाहिअ नाचा।' मा० २.१२७.८ काछे : क्रि०वि० । परिधान सजाए, पहने हुए (मुद्रा में) । 'मुनिबर वेष वने अति काछे।' मा० ३.७.२ काछे : भू००० (सं० कक्षित>प्रा० कच्छिय) ब० । पहने । चौतनी चोलना काछे।' गी० १.७४.१
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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