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तुलसी शब्द-कोश
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कपिकच्छ : सं०स्त्री० (सं.)। के वांच नामक लता (जिसे वानर उखाड़ डालता
है)। 'बाहु सूल कपिकच्छु बेलि - कपिकेलि ही उखारिए।' हनु० २४ । कपिकुजर : हाथी जैसे डील डोल वाला वानर । 'कट कटान कपिकुंजर भारी।'
मा० ६.३२.३ कपिन, न्हि : कपि+संब० । वानरों। 'देखिन्ह जाइ कपिन्ह के ठट्ठा।' मा०
६.४१.४ कपिपति : वानरों का राजा=सुग्रीव । मा० ४.४.२ कपिपोत : (दे० पोट) । बन्दर का बच्चा । 'रे कपिपोत बोलु संभारी।' मा०
६.२१.१ कपिराइ, ई : कपिराज । मा० ५.५ कपिराउ, ऊ : (दे० राऊ) । वानरों का एकमात्र स्वामी । मा० ४.१२.४ कपिराज : कपिपति । (१) सुग्रीव । मा० ६ ६५ (२) श्रेष्ठ वानर, हनुमान ।
कवि० ७.१७६ कपिल : सं०० (सं०) । सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक मनि जो चौबीस अवतारों में
परिगणित हैं । मा० १.१४२.६ कपिलहि : कपिला गाय को । 'जिमि कपिलहि घालइ हरहाई।' मा० ७.३६.२ कपिला : सं०स्त्री० (सं०) । पीले रंग की श्रेष्ठ गाय । जिमि मलेच्छ बस कपिला
गाई।' मा० ३.२६.८ कपिलीला : वानरक्रीडा=उछल कूद, मुह बिचकाना, किलकिला शब्द, दांत
निकालना, झपट्टा, खो खो ध्वनि आदि । मा० ६.४४.५ कपिश : वि० (सं.)। भूरे रंग का (वानर जैसे रंग वाला)। 'कपिश कर्कश ____ जटाजूटधारी ।' विन० २८.२ कपिस : कपिश । हनु० २ कपिहि : कपि ने ही 'प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा ।' मा० ५.२०.४ कपिहि : कपि को, कपि के प्रति । 'सो छन कपिहि कलप समबीता।' मा०
५.१२.१२ कपीश्वर : वानर श्रेष्ठ हनुमान । मा० १ श्लोक ४ कपीस, सा : (सं० कपीश) : (१) वानरराज =सुग्रीव । मा० ४.२०.२ (२) श्रेष्ठ
वानर । हनुमान कपीसु : कपीस + कए० । अद्वितीय वानरराज। (१) हनुमान । 'कपीसु कूघो बात
घात जलधि हलोरि के ।' कवि० ५.२७ (२) सुग्रीव । कवि० ७.४ कपूत : सं०० (सं० कुपुत्र, कापुत्र, कसुत्र>प्रा० कप्पुत्त) । निन्दित पुत्र । मा०
१.२६६.१