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तुलसी शब्द-कोश
कंजराग : पक्षराग । मणिविशेष । 'कंजकोस भीतर जन कंचराग सिखर निकर।'
गी०७७.४ कंजा : कंजा । मा० १.१४८.८ कंजारुन : वि० (सं० कंजारुण) । कमल के समान लाल । मा० ५.४५.४ कंजु : कंज+कए । 'बंदउँ मुनि पद कंजु ।' मा० १.१४ घ कंटक : सं०० (सं०) । (१) काँटा । 'कुस कंटक मग कांकर नाना ।' मा० . २.६२.५ (२) व्याघात, विरोधी तत्त्व । 'कासी में कंटक जेने भए।' कवि०
७.१७९ (३) शत्रु (शत्रु विनाश = कण्टक शोधन)। 'तीय तनय सेवक सखा मन के कंटक चारि ।' दो० ४७६ (मूल अर्थ एक है--चुभन की समानता से
अन्य अर्थ आते हैं जो मानसिक कोंचन से सम्बद्ध है।) कंटकित : वि० (सं०) । काँटों से युक्त । 'कमल कंटकित सजनी, कोमल पाइ ।'
बर० २६ कंठ : सं०० (सं.)। ग्रीवा । मा० १.७२.७ कंठगत : कण्ठ में स्थित (सारे शरीर को छोड़कर कण्ठ में आया हुआ)। 'प्रान
कंठगत भयउ भुआलू ।' मा० २.१५४.१ कंठहंसी गुप्त परिहास जो गले तक ही सीमित हो, बाहर प्रगति ध्वनि न करे ।
गी० १.८४.८ कंठा : सं०० (सं० कण्ठ्य >प्रा० कंठअ) । ग्रीवाभरण । 'कुंजर-मनि कंठा कलित।'
मा० १.२४३ कंछु : कंठ+कए० । 'कंठु सूख मुख आव न बानी ।' मा० २.३५.२ कंठे : (सं० पद) । कण्ठ में । मा० ७.१०८ छं०६ कंडु : सं०स्त्री० (सं० कण्डु = कण्डू)। (१) खुजली का रोग । मा० ७.१२१.३३
(२) खुजलाहट । 'भ्रमत मंदर कंडु सुख मुरारी ।' विन० ५२.३ कंत, कंता : सं०+वि०पु० (सं० कान्त >प्रा० कंत)। प्रिय, पति । 'सिंधु सुता
प्रिय कंता ।' मा० १.१८६ छं० कंद : सं०० (सं०) । (१) मूल, जड़ (कारण) । 'प्रगटे सुषमा कंद ।' मा०
१.१६४ (२) खाद्य मूलविशेष । 'कंद मूल फल भोजन ।' मा० १.२०६ (३) (सं० कं=जल+द)=जलद । मेघ । 'कंद तड़ित बिधै जनु सुरपति धनु ।'
गी० १.१०८.६ कंदद : मेघ समूह । 'कंदबृद बरषत जनु ' गी० ७.७.५ कंदर : सं००+स्त्री० (सं० कन्दर कन्दरा) । गृहा । मा० ३.१८.११ कंदरन्हि : कंदर+संब० । कंदराओं। 'सदग्रंथ परबत कंदरन्हि महं जाइ तेहिं
अवसर दुरे।' मा० १.८४ छं०