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________________ तुलसी शब्द-कोश 107 (४) शरद् =आश्विन-कार्तिक; (५) हेमन्त मार्गशीर्ष-पोष; (६) शिशिर =माघ-फाल्गुन । ये मास सूर्य तिथि से लिये जाते हैं। ऋतुनाथ : बसन्त । गी० २.२४.२ ऋतुपति : बसन्त । गी० १.६५.३ ऋसि : सं०स्त्री० (सं.)। (१) वृद्धि (२) उन्नति, अभ्युदय (३) सफलता (४) महत्ता (५) उत्तमता, उदात्तता, उदरता (६) पूर्णता, समग्रता, श्रेष्ठता (७) अप्राकृत शक्ति (८) उपलब्धि (६) सम्पत्ति (१०) कुबेर की पत्नी (११) पार्वती (१२) लक्ष्मी । रा०न० २० ऋषयनि : (दे० रिषय) । ऋषियों ने । 'जे पूजी कौसिक मख ऋषयनि ।' गी० ७.१३.४ ऋषि : सं०० (सं०) । वेद-मन्त्रों का द्रष्टा, मन्त्ररहस्य ज्ञाता । गी० १.६०.४ ऋषिन : ऋषि+संब० (सं० ऋषीणाम्) । ऋषियों । 'ऋषिन के आश्रम सराहैं।" गी० २.४५४ ए : सर्वनाम- कब (सं० एते>प्रा० एए>अ० एइ) । ये । 'ए प्रिय सबहि जहाँ __लगि प्रानी।' मा० १.२१६.७ एइ, एई : ये ही । केवल ये । ‘इन्ह से एइ कहैं ।' मा० १.३११ छं० एउ, एऊ : ये भी । 'एउ देखिहैं पिनाकु ।' गी० १.६८.४ एक: (१) संख्या (सं०) । 'एक कलप एहि बिधि अवतारा।' मा० ११२३.४ (२) सर्वनाम (सं.) । कुछ कतिपय । 'एक कहहिं भल भूप न कीन्हा ।' मा० २ ४८.२ (३) वि० (सं.) । श्रेष्ठ । 'परम बिचित्र एक ते एका ।' मा० १.१२२.२ (४ वि०) (सं०) । अल्प । 'कथा कछु एक है कही।' मा० ५.३ छं० ३ (५) वि० (सं०) । अनन्य, एकमात्र । 'राम नाम गति एक ।' दो० ३७. (६) वि० (सं०) । अद्वितीय, सर्वोत्तम-निज जननी के एक कुमार । एकत, ता : एकान्त । 'सदा रहैं एहि भांति एकता।' वैरा० ४७ एकइ : एक ही । 'एकइ उर बम दुसह दवारी।' मा० २.१८४.६ एकउ : एक ही । 'जदपि कबित रस एकउ नाहीं ।' मा० १.१०.७
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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