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तुलसी शब्द-कोश
ऊतरु : उतरु । एक भी उत्तर । 'ऊतरु देइ न, लेइ उसासू ।' मा० २.१३.६ ऊतरे : उतरे। पहने कर फेंके-पुराने । 'तुलसी पट ऊतरे ओढ़िहौं ।' गी० ५.३०.४ ऊधो, धौ : सं०० (सं० उद्धव) । मथुरा में कृष्ण के सखा । कृ० ४६ ऊना : वि०पु० (सं० ऊन) न्यून, अल्प, छोटा । 'अस कस कहहु मानि मन ऊना।'
मा० २.२१.४ ऊपजै : उपजइ । 'दुख ते दुख नहिं ऊपजी।' वैरा० ३० ऊपर : अव्यय (सं० उपरि >प्रा० उप्परि) । मा० ५.३०.२ ऊब : सं०स्त्री० । उद्वेग, मानसिक क्लान्ति, उदासी । 'सब की सहत, उर अंतर
न ऊब हो।' कवि० ७.१०८।। ऊबर : वि० (१) उबार । रक्षा। (२) (सं० उर्वर>प्रा० उव्वर) । अधिक, ___ 'सफल । 'सो सब बिधि ऊबर कर, अपराध बिसारी।' विन० ३४.४ /ऊबर, ऊवरइ : (/ऊबर)। बच जाय, बच सकता है । 'कह तुलसी सो
ऊबरै जेहि राख राम राजिवनयन ।' कवि० ७.११७ ऊमरि : सं०स्त्री० (सं० उदुम्बरि>प्रा० उंबरि)। गूलर वृक्ष । 'खमरि तरु बिसाल
तब माया।' मा० ३.१३.६ ऊर्घ : (सं० ऊर्ध्व) । ऊपर । कवि० ५.१७ ऊध्वरेता वि.पुं० (सं० ऊर्ध्वरेतस्) । जिसका रेतस् (वीर्य) ऊर्ध्व हो-नीच न
आये; वीर्यपात रहित= ब्रह्मचारी । विन० २६.३ ऊपर : सं०० (सं०) अनुर्वर भूमि जिसकी दूषित मिट्टी में वनस्पति नहीं उगते ।
_ 'ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा ।' मा० ४.१५.१० ऊसर : ऊषर । 'ऊसर बीज बएँ फल जथा।' मा० ५.५८.४ ऊसरो : ऊसर भी । 'सुखेत होत ऊसरो।' कवि० ७.१६
ऋ
ऋक्ष : सं०० (सं०) । रीछ, भालू । विन० २५.६ ऋचा : सं०स्त्री० (सं० ऋच्) । वेद मन्त्र । गी० १.२३.५ ऋतु : सं० (सं०)। वर्ष के छठे भाग के दोमास का समय- (१) बसन्त =
चैत्र-वैशाख; (२) ग्रीष्म= ज्येष्ठ-आषाढ; (३) वर्षा =श्रावण-भाद्रपद;