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तुलसी शब्द-कोश
'उपचरित' महाभारत, शान्ति मा० ३.३० ललकार, आह्वान । 'भरत हमहि उपचार न थोरा।' मा० २.२२६.७ (५) उपाय, चिकित्सा, बिनती, प्रार्थना आदि
का श्लिष्ट रूप- 'नाना उपचार करि हरि ।' कवि० ५.२५ उपज : उपजइ । उत्पन्न होता है । 'उपज क्रोध ग्यानिन्ह के हिएँ।' मा० ७.१११.१५ /उपज, उपजाइ : (सं० उत्पद्यते>प्रा० उप्पज्जइ- उत्पन्न होना, जन्म लेना,
उगना) आ०प्रए । उपजाता है । 'बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग ।' मा० ४.१५ख उपजती है। 'सुनि प्रभु पद रति उपजइ।' मा०
७.६६ के उपजत : वकृ.पु । उत्पन्न होता-होते । 'निमिष निमिष उपजत सुख नए । मा०
७८६ उपहिं : आ०प्रब ० । उत्पन्न होते हैं। 'उपजहिं एक संग जग माहीं।' मा०
१.५५ उपजा : भू००० (सं० उत्पन्न>प्रा० उप्पाजिम) । उत्पन्न हुआ । 'उपजा हियँ
अति हरषु बिसेषा ।' मा० १.५०-१ उपजाइ : पूकृ० उत्पन्न करके । 'बंदि बोले बिरद अकस उपजाइ के।' गी०
१.८४.७ उपजाए : उत्पन्न किये (से) । 'बिद्या बिनु बिवेक उपजाएँ ।' मा० ३.२१.६ उपजाए : भू० कृ०० बहु० (सं० उत्पादिता:>प्रा० उप्पज्जाविया) । उत्पन्न किये
(हुए) 'भलेउ पोच सब बिधि उपजाए।' मा० १.६.३ । उपजायक : उपजाने का, उत्पन्न करने का । 'यह दूसन बिधि होत तोहि अब राम
चरन बियोग उपजायक ।' गी० २.३.३ । उपजाया : भू००० । उत्पन्न किया। 'आदिसक्ति जेहिं जब उपजाया।' मा०
१.५२.४ Vउपजाव, उपजावइ : (सं० उत्पादयति >प्रा० उप्पज्जावइ-उत्पन्न करना) ।
आ०प्रए । उत्पन्न करता है। निज भ्रम ते रबिकर संभव सागर अति भय
उपजावै ।' विन ० १२२.४' उपजावसि : आ०मए० (सं० उत्पादयसि>प्रा० उप्पज्जावसि)। तू उत्पन्न करता
है, तू उत्पन्न कर । 'अब जनि रिस उपजावसि मोही।' मा० ६.३१.५ उपजावहिं : आप्रब० (सं० उत्पादयन्ति.>प्रा० उप्पज्जावंति>अ० उप्पज्जावहिं)।
उत्पन्न करते हैं । 'जय जय धुनि करि भय उपजावहिं ।' मा० ६६३.७ उपजावा : (१) उपजाया। 'जगु बिरंचि उपजावा जब तें।' मा० १.३२०.५
(२) उपजावइ । उत्पन्न करता है। 'देखहु तात बसंत सुहावा । प्रिया हीन
मोहि भय उपजावा।' मा० ३.३७.१० उपजावं : दे० /उपजाव ।