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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वायको दूर करे नदर को बल प्राप्त करें और दिल म था मस्तक तथा जिगर ओोरहो सहवास को पराक्रम करें और पाचक है- सौर पठ्ठे और ताक़त तथावाजू को मजबूत करें औरखदर औरषासी नथा स्वास अथवाज लंधर और वेहोसी और तिल्ली की सूजन को दूर करें सौ रगर्भनी स्त्री केववाकी रक्षा करें इन रोगों को दूर क रे औरघाकी स्लाग पुलाव के फूल ॥ अथ करह ॥ अर्थात फारसी कद्दू हिंदी में लोकी और घीया दूसरेदर आ में सर्द और तर हैजनाव का को लहै के घीया षाने से । बुद्ध सौर भेजा की वृद्धि होती है और मुलायम करने वाली घोलने वाली और पेशाब जारी करने वालीतथा पसीना लाने वाली और प्यास बुझाने वाली सौरदिल । की गरमी शांत करने वाली चोरधीयाका सर्क तुर्तपचा देता है और पिनको तुर्तशांत करती है या कारण या मेंब टाई मिलाके पीना उचितहै ॥ अथ कुतुम॥सर्या तू फारसी में वसभा और नील हिंदीमें लील कहते हैं । पहले दरजा गरम दूसरे में खुश्क कहते हैंजनाव का को लहे के पासे और मदी से निचे बद्धदूर होती हैप रंतु षाने के काम नहीं साती है और याके पत्तों को वालें | में लगावैतोवालका ले भमर हो जाय और को इके ली तथा और किसीवस्तुके संग लगा वे तो मस्तक में पीड़ा पेदा होय याकी लागलोंग है। अथकरास। अर्थात् फार |सी गंदना तीसरेदरजा में गरम और खुश्क है जनावका कोल है के गंदना खोटी कस्तूरीमे से है यह तचीपत की मुलायम करती है और स्त्री धर्म को जारी करती है और For Private and Personal Use Only BES
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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