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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - मेंाजेनोजोतकोवडावैऔरजोपानी में घोलकेपी वैतीतरीलावैमोरइकेलापीवैतोरखुश्कीलाह। ॥अथकीकाअर्थातलालदूसरेदरजा समोर रखुश्क है जनावकाकोलहैके लालकी अंगूठी पहर मासुवारिक होता है औरउस्कीभस्मवाने में प्रच्छी होती है जिगरकोताकतदेती है और जिगरीरतिल्ली कीगाँठबोलतीहोरगुरदेवथामसानेकीपथरीको नोडकेनिकालेहमीरपुरदेकोनुकसानकरैतोयाकी लागवंबूरकागोंद है।प्रथसनवअर्थातफारसी| मेंअंगर नस्कापीलाछिलकापहलेदरजा में गरमतथा खुश्कहै ओरवाकोगदोपहलेदरजागरमदूसरे। तरहै औरमस्कावीजदूसरेदरजा सर्द श्रीरश्क! हैजनावकाकोल केसवमेवोंसेझंगरउन्नमहो। रवाने में सबसे अच्छीमेवाहै निर्मलरुधिरपेदाकरे हौरविगडेरुधिरकोश्रुद्धकरैहै औरगुरदेकोषलया प्रकरे औरछातीतयातषताको गुणकरै सौरवायको दूरकरैोरशरीरकोवलवानतथा मोटाकरेोरन दरकीतरीकोनुकसानकरैयाकीलागमीठामनारहै। "सथकदहिंदीमर्यातसगरहैदूसरेदरजाभंग रमऔरतीसरे खुश्कोरकालाकिररा संग| धितासोरकटुवा खोरजोपानीमेंड्वजायवहानगर अच्छाहोताहेजनावकाकीलहै के गरकालेनाही उचितहेक्योंकेया सातप्रकारकेसारामहेंयाकीप हलूकदर्द मेंनासदेयतोपीडाजाय एकतोलन मेंसेय हिहैकफकोदूरकरैचिन्नकोघसन्नराधेगाों को बोले - - - - Mamw wo For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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