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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैं अगर इन में से बहुत सी प्रत्यक्ष हैं वैद्य कविद्या में नही मालूम होती परंतु जब के हजरत का कोईकाम तथा वारता विना हि कमल के नथी और जब किसी वस्तु का हाल नथा वडाई तथा चुराई करनी हो तीतो वह वैद्यविद्या से मिली मालूम होती है याकारण वस्तु की प्रक्रती और खासीयत अगले हकीमों की प्रथक | प्रथक बातों को विशेष जान के उनको छोददिया मौ रमुझे जितना मिला और समझ में पाया और जा । को मैंने राजमा ली या उतना सही लिखता हूं। पहली फसेवार तिक खबरों में उतर ज] अर्थात् विजो रापीले रंग का नींबूसे बड़ा होता है और बाको छिलके बहुत भारी और गूदो थोड़ा और मीठा होता है मोरज नावरसूलका को ल है के विजोरा पान करनानचि तहै क्यों के वह दिलतथा मस्तक को घवल करता है वाका जीरादूसरे दरजा में सरद और तर है और दि ल तथा मस्तके वलवान - सोरतरकरने वाला है ॥ सौरगरमी को दूर करने वाला है और उस्का छिल का दूसरे दरजा में गरम और खुश्क है औरजदर को अति पराक्रम वडा वै और पाश्च क है और चित्त्रकोष सन्न राषै किसी मुनासिव वस्तु के संग में ॥ अथस समद ॥ अर्थात् सुरमास्पाह पहले दरजा में सर्द मौ र दूसरे में खुश्क है ॥ वाजे मनुष्य यह वरणन करते है । कैना समय हजरत मूसा को तूर के पहाड़ पर ईश्वर नों लो दिघाई वालो केपत्ताप से तूरका पहाडतयाको स्पर संस्थान जल के कोयला के तुल्य होगया For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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