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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - - - - - - - - - - - - .. - - - - anemi -- - - .-- - - रीओरनजलाकेरोगो में गरमदवा औरगरमी कैरोगों कोनोरगरमीकेनजलकोठंडीदवावहुधाकर केहो नीचाहिये।मथनतूलकीरीताअर्थाततडेडाका डेतथाभीजीदवाकोठंडेपानीकोथोडीदुरसेकाईषा लजोडपरडालनाजोदवाकीनासीरअच्छधकारसे सरकरेसोरगुरदेतथामसाने के रोग मेंदेकेसावा जन करनाभीनतमसथनफूखकीरीता नि फुकनीदवाईकेमहीन चूरनको कागजकीयो ईमें रखकेनाकतथाकंठसथवारोगकीदूसरीजगैर मेंफूकनारामथवजूरकीरीमाजवकेरोगीदवान पीसकेतोपतलीदवावाके कंटमेंटेपकानामिका लहदूसरावयानवाजसदवीयेवोगजीयेमें नर्थात दूसराषंड वाईऔरभोजनादिककेनकरर्णा में जिनकी निसवतनवीसाहिवरखवरदेतेपघटNI होकेजनावनवीयोंके सरदारके ईश्वरकीटनपरकपा रहैवरणानकरते हें केजीकोईमनुष्य मेरीइनचाली | सवारतानोकोयादकरैतोवरजस्कानाम स्वर्ग|| में मेरी जम्मत मेंसिपुर्षो में रखेगाऔरसंसारमेंवि द्यावान मोरमुधीरहेगा औरउनकोनतोकाईवात काडरहोगाोरनचिंताहोगीजोकेयावारताकीम जमोनमतविद्यासेमिलादुधासमझजाताहै परंतु सिद्धाईकैकारणसेदूरसमझनानचितनंही और के वासञ्चेत्पोरेकजोदूनखवरोंको कंटकरलेतोवैद्यक|| विद्या प्रवलनानीरसच्छापनधिशेषनाजायगर याकारणबहुतीकीरशुद्धवारतालिबीजाती - - - - - - - - - -- For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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