SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कों में लिखा है के मरहम का वल बहुत दिना लाई वाकीर हता है जिसमें जैतून का तेल मिला हो उस्का बलभी नही जाता और जिसमें अत्यंत गोंद हो उसमें वीस वर्ष परियंत परा कम रहता है और जिसमें चर वीमिली हो उस्कावल एक वर्ष ताई रहता है । रोशनाई ॥ अर्थात सुर्मा नेत्रों में जोन का वहानें वाला सबसे प्रथम तो सकलीया के बा दशाह सरस नंदूत के ताई हकीम फीसा गोरसनें वना या था ॥ वरूद ॥ न स्को प्रथम तो समये के वादपूण ह की | नेत्रों के जल दूर करने के ताई ठंडी वस्तु और हर्कम स की यानूसनें तैयार की या उस्से पीछे और 2 मुना सिव वस्तुभी मिलने लगी | ॥ फसलतीसरी खास इसी पुस्तक की तोल के प्रकर्ण में ॥ गुरग॥ केई औषधी मिली हुई के नुसखा में उस्की पक्कृती अस्था पत करना योग्य है अर्थात प्रत्येक वस्तु जो पथकर हैं मिल कर किसी एक दरजा पर ठहराई जाय और जिन रोगों के कारण वह मिलाईजाय सव की पक्रा त मिला ली जावै परंतु यह सब बातें उस समय हाथ । लगती हैं के जिस समय असल वस्तु गिनती और तो। ल कम जादा न हो और जो कोई वस्तु नापेद हो तो उस के वदले दूसरी वस्तु मिला ली जाय हरद वाकी अस ली तोल रहेना उचित नही असली हालत नही रहस कती निदान इसी कारण से नुसखों में अजान लवजों मेनोलोके नामहें जेसे प्रो की या ॥ अस्तार। पुला वंदका । तरमसा जोजा। दांक। शुकरजा। तस वज। भिस्काल For Private and Personal Use Only
SR No.020831
Book TitleTibba Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Munshi, Bansidhar Munshi
PublisherKanhaiyalal Munshi
Publication Year1882
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy