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दीपिकाfनयुक्तिश्च अ० ४ सु. २०
कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवनिरूपणम् ५१३
वण्णा, बारसविहा पण्णत्ता, तंजहा- सोहम्मा-ईसाणा -सर्णकुमारा- महिंदा बंभलोगा-संसयामहामुक्का - सहस्सारा- आणया-पाणया-आरणा -अच्चुया य" इति ।
वैमानिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा- कल्पोपपन्नकाश्च-कल्पातीताश्च । अथकिं ते कल्पोषपन्नकाः -? ।
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कल्पोपपन्नका द्वादशविधाः प्रज्ञप्ताः तद्यथा - सौधर्माः - ईशानाः सनत्कुमाराः - माहेन्द्राः ब्रह्मलोकाः–लान्तकाः–महाशुक्राः - सहस्रारा:- आनताः - प्राणताः - आरणा:-अच्युताश्चेति । पुनरप्युक्तञ्च प्रज्ञापनायां ६ - पदे, अनुयोगद्वारे औपपातिके सिद्धाधिकारेच – “सोहम्म - ईसाण सकुमार - माहिंद - बंभलोय-लंतंग-महामुक्क-सहस्सार - आणय - पाणय- आरण - अच्चुया" इति । सौधर्मे - शान - सनत्कुमार - माहेन्द्र - ब्रह्मलोक - लान्तक - महाशुक्र - सहस्रारा - ssनत-प्राणता - ssरणा - sच्युताः इति ॥ सू०२० ॥
मूलसूत्रम् - " कप्पाईया वैमाणिया चउदसविहा, णवगेवेज्जगा पंचाणुसरोववाइयया - " ॥ सू० २१ ॥
छाया - " कल्पतीता वैमानिकाश्चतुर्दशविधाः” नवत्रैवेयक - पञ्चानुत्तरौ - पपातिकमेदात्- ॥ सू० २१ ॥
तत्वार्थदीपिका - पूर्व कल्पोपपन्नका बैमानिकदेवा सौधर्मादयो द्वादशविधा विशेषतः प्ररूपिताः सम्प्रति–कल्पातीतानां वैमानिकदेवानां चतुर्दशविधानां विशेषतः प्ररूपणं कर्तुमाह“कप्पाईयवेमाणिया चउद्दसविहा, णवगेवेज्जगपंचानुत्तरोववाइयभेया - " इति ।
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बारह प्रकार के होते हैं, यथा-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, और अच्युत ।
प्रज्ञापना सूत्र के छठे पद में तथा अनुयोगद्वार में और औपपातिक सूत्र के सिद्धाधिकार में कहा है
सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, और अच्युत ॥सूत्र - २०॥
सूत्रार्थ - ' कप्पाईया वेमाणिया' इत्यादि ॥ सूत्र. २१ ॥
कल्पातीत वैमानिक देव चौदह प्रकार के हैं - नवग्रैवेयक देव और पाँच अनुत्तरौपपातिकदेव ॥ सूत्र ॥ २१ ॥
तत्वार्थदीपिका - पहले कल्पोपपन्न वैमानिक देवों के सौधर्म आदि बारह विशेष भेदों का निरूपण किया गया अब कल्पातीत वैमानिक देवों के चौदह अवान्तर मैदो की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं-कल्पातीत वैमानिक देव चौदह प्रकार के हैंनौग्रैवेयक और पाँच अनुत्तरौपपातिक ।
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