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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ. २ सू. २८ स्कन्धानां बन्धत्वनिरूपणम् ३१३ स्पर्शगुणपरिणामो रूक्षः' ततश्च-संश्लेषणस्नेहरूक्षपरिणतिमत्त्वात् सर्वात्मना संयोगजन्यबन्धो भवतीति सिद्धम् । तथाविधो हि बन्धविशेषः एतादृशपुद्गलद्रव्याणां प्रत्यक्षतया प्रसिद्धः ।। संहतं महद्रव्यं घटपटादिकं प्रत्यक्षसिद्धं परमाणुबन्धस्याऽनुमापकं बोध्यम् । तथाहि-परमाणुसंहतिविशेषं विना महत्संहतं न सम्भवति । एवञ्च प्रत्यक्षसिद्धघटादि द्रव्यसंहतेन परमाणुसंहतिरपि बन्धरूपाऽनुमीयते, तथाच-स्निग्धगुणानां च बन्धो भवतीति बोध्यम् । परन्तु–नाऽयं नियमो वर्तते यत्-सर्वस्यैव स्निग्धगुणस्य रूक्षगुणेन सह बन्धो भवत्येव । एकगुणस्निग्धस्य पुद्गलस्यैकगुणरूक्षेण सह पुद्गलेन न बन्धः जघन्यगुणवत्त्वेन द्वयोर्विमात्राया अभावात् । स्वस्थानापेक्षया स्निग्धस्य पुद्गलस्य स्निग्धेव पुद्गलेन बन्धो न भवति । एवं-स्वस्थाना पेक्षया ऽपि-एकगुणस्निग्धस्य पुद्गलस्यैकगुणरूक्षेण पुद्गलेन सह बन्धो न भवति । एकगुणस्निग्धरूक्षादीनां संयोगे सत्यपि स्निग्धरूक्षत्वे च सत्यपि न परस्परमेकत्वपरिणतिलक्षणो बन्धः सञ्जायते। तेषां परस्परबन्धाभावे कारणं तु-तथाविधपरिणतिशक्त्यभाव एव प्रतीयते । पुद्गलद्रव्याणां परिणतिशक्तयश्च क्षेत्रकालानुसारिण्यो विचित्रा एव प्रयोगविस्रसापेक्षाः प्रभवन्ति । जघन्यश्च -स्नेहकिसी में संख्यात, किसी में असंख्यात और किसी में अनन्त गुण रूक्षता होती है । इस प्रकार स्निग्धता (चिकनाहट) और रूक्षता (सूखेपन) के कारण परमाणुओं में संश्लेष होता है और वे एक दूसरे के साथ बद्ध हो जातेहैं । बद्ध होने पर स्कंध की उत्पत्ति होती है। पुद्गल द्रव्यों का इस प्रकार बन्ध होना प्रत्यक्ष से सिद्ध है । स्थूल जो घट पट आदि पुद्गल स्कंध हैं और जो प्रत्यक्ष से प्रतीत होते हैं, वही परमाणुओं के बन्ध के अनुमापक हैं, अर्थात् उन्हें देखने से परमाणुओ के बन्ध का अनुमान किया जा सकता है। क्योंकि परमाणुओं का संघात हुए विना महान् आकार उत्पन्न नहीं हो सकता । इस प्रकार प्रत्यक्ष से सिद्ध घट आदि पिण्डों से परमाणुओं के संयोग बन्ध का अनुमान होता है । अतएव यह समझना चाहिए कि स्नेह गुण वाले और रूक्ष गुण वाले परमाणुओं का बन्ध होता है। __मगर ऐसा नियम नहीं कि सभी स्निग्धता गुण वाले पुद्गलों का सभी रूक्ष पुद्गलों के साथ बन्ध हो ही जाता है । अगर किसी पुद्गल में एक गुण स्निग्धता है तो एक गुण रूक्षता वाले पुद्गल के साथ उसका बन्ध नहीं होता, क्यों कि दोनों ही पुद्गल जघन्य गुण वाले हैं, अतः उनमें गुण की विसदृशता अर्थात् विषम परिमाण नहीं हैं । स्वस्थान की अपेक्षा से स्निग्ध पुद्गल का स्निग्ध पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार एक गुण स्निग्ध पुद्गल का एक गुण रूक्ष पुद्गल के साथ बन्ध नहीं होता। एक गुण स्निग्ध और एक गुण रूक्ष पुद्गलों का संयोग होने पर भी और उनमें स्निग्धता तथा रूक्षता होने पर भी परस्पर बन्ध नहीं होताहै । __इन पुद्गलों का बन्ध न होने का कारण तो उनमें उस रूप में परिणत होने की शक्ति
SR No.020813
Book TitleTattvartha Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1020
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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