________________
३१२
तत्वार्थसूत्रे
माह -
- "वेमायणिद्धलुक्खत्तणेण संधाणं बंधो" इति । विमात्र - स्निग्ध- रूक्षत्वेन स्कन्धानां बन्धः, विषमा-असमा मात्रा अंशो ययोस्तौ विमात्रौ, स्पर्शाख्यो गुणः स्नेहः, तत्परिणामः स्निग्धः । एवं रूक्षोऽपि स्पर्शाख्यगुणपरिणामः, स्निग्धश्च – रूक्षश्च स्निग्धरूक्षौ, एकः स्निग्धः - अपरो रूक्ष इत्यर्थः । विमात्रौ च तौ स्निग्धरुक्षौ तयोर्भावो विमात्रस्निग्ध- रूक्षत्वं तेन - विमात्रस्निग्ध रूक्षत्वेन तत्परिणत्या - पत्त्या स्कन्धानां द्व्यणुकादीनां बन्धो भवतीति भावः ।
तथाच — विमात्रयोः स्निग्धरूक्षयोः परस्परसंयुक्तोः परमाण्वादिपुद्गलयोरेकत्वपरिणामलक्षणबन्धेन व्यणुकादि स्कन्धाः सम्पद्यन्ते । एवञ्च - एकस्थानाद् गलति अपरं स्थानं पूरयति -- इति पूरणादं गलनाच्च पुद्गलाः पूरकत्वेन स्कन्धान् निष्पादयन्ति गलनेन च -स्कन्धभेदं कुर्वन्ति । पुद्गलाः । तत्र–सकलो बन्धः संयोगपूर्वको भवति, रूक्षता स्नेहविशेषात् परमाणोः परमाण्वन्तरेण संश्लेषात्मको बन्धो मृद्रजोभिस्तृणादिबन्धवत् संजायते ।
तथाहि - परमाणव एकगुण स्निग्धादि क्रमेण संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्ताऽनन्तगुणास्निग्धाः सन्ति उदकाजागोमहिष्युष्ट्रयवीदुग्ध-घृतस्नेहप्रवर्षाऽप्रकर्षवत् । एवम् - एकगुणरूक्षादिक्रमेण हीन - मध्यमोत्कृष्टसंख्येयाऽसंख्येयानन्तगुणरूक्षा भविन्त । तत्र - चिक्कणत्वलक्षणः स्नेहः तद्विपरीतः
असमान अंशों में स्निग्धता और रूक्षता होने से बंध होता है । स्नेह का मतलब है चिकनापन और रूक्षता का अर्थ है सूखापन | यह दोनों पुद्गल के स्पर्शनामक गुण की अवस्थाएँ हैं । दो परमाणुओं में से एक स्निग्ध और दूसरा रूक्ष होता है और वह स्निग्धता एवं रूक्षता जब विसदृश मात्रा में होती है तब उनका परस्पर में बन्ध हो जाता है ।
इस प्रकार विभिन्न मात्रा (अंश) वाले परस्पर में संयुक्त स्निग्धता और रूक्ष परमाणु आदि पुद्गलों के एकत्व परिणमन रूप बन्धन से द्वणुक आदि स्कंध उत्पन्न हो जाते हैं । इस तरह एक स्थान से गलता अर्थात् बिछुड़ता है और दूसरे स्थान को पूरता है - दूसरे में मिलता है, इस प्रकार पूरण और गलन के कारण वह पुद्गल कहलाता है । पूरक होकर वह स्कंधों को उत्पन्न करता है और गलन करके स्कंध में भेद उत्पन्न करता है । जितने भी बन्धन हैं, सब संयोग पूर्वक ही होते हैं । स्निग्धता और रूक्षता की विशेषता के कारण परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ संश्लेषरूप बन्ध होता है ।
सब परमाणुओं में स्निग्धता एक सी नहीं होती । किसी में एक गुण (डिगरी) स्निग्धता होती है, किसी में असंख्यात गुण और किसी में अनन्त गुण भी स्निग्धता होती है ।
जल में थोड़ी स्निग्धता है । उसकी अपेक्षा बकरी के दूध में अधित है और फिर गाय, भैंस, उँटनी एवं भेड़ के दूध में क्रमशः अधिकाधिक स्निग्धता पाई जाती है । घृत में और अधिक होती है । इसी प्रकार रूक्षता भी न्यूनाधिक मात्रा में विद्यमान रहती है । कोई पुद्गल हीन रूक्षता वाला कोई मध्यम रूक्षता वाला और कोई उत्कृष्ट रूक्षता वाला होता है ।
I