________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Achar
गृहस्थ-धर्म [१]
सत्य दूसरा मृषात्याग अणुव्रत पांच प्रकारका होता है : कन्यानृत, गौअनृत भूमिअन्त न्यासहरण और कूटसाक्षित्व । इनके त्यागके ब्रतको ग्रहण करके उसके पूर्णतः पालन के लिये तत्संबंधी अतीचारों को यथाविधि जानकर उनका प्रयत्नपूर्वक निवारण करना चाहिये ॥११.१२ ।।
सहसा अभ्याख्यान, रहस्य अभ्याख्यान, स्वदारामंत्रभेद, मृतोपदेश व कूटलेखकरण इन अतीचारों से बचना चाहिये ।।१३ ॥
बुद्धिपूर्वक विचार करके ऐसे वचन बोलना चाहिये जो इस लोक और परलोकके अविरुद्ध हों तथा अपने लिये, दूसरोंके लिये एवं दोनोंके लिये सर्वथा पाडाजनक न हों ॥१४॥
अचौर्य तीसरे अदत्तादान-त्याग-अणुव्रतको सचित्त और अचित्तके संबंधसे वीतराग भगवान्ने दो प्रकारका कहा है। इसके अतीचार स्तेनात, तस्कर-प्रयोग विरुद्धराज्यातिक्रम, कूट नापतौल व नकली वस्तुके व्यवहारका निवारण करना चाहिये ।।१४-१५॥
ब्रह्मचर्य चौथा अणुव्रत परदार-परित्याग व स्वदार-संतोष है। परदारा औदारिक व वैक्रियिक शरीरके भेदसे दो प्रकारकी होती है। इत्वरिका-परिगृहतिा-गमन, अपरिगृहीतागमन, अनंगक्रीडा, परविवाहकरण, और काम तीवाभिलाष, ये पांच ब्रह्मचर्य व्रत के अतीचार हैं। इनको तथा मोहोत्पादक विकार सहित पर-युवति दर्शनादिका निवारण करना चाहिये । ये मदनके बाण चारित्ररूपी प्राणका विनाश कर डालते हैं।!१६-१८॥
अपरिग्रह सचित्त और अचित्त सम्पत्तिमें इच्छाका परिमाण कर लेनेको अनन्त ज्ञानियोंने पांचयाँ अपरिग्रह अणुव्रत कहा है। भले प्रकार शुद्धचित्त होकर क्षेत्रादि हिरण्यादि, धनादि, द्विपदादि तथा कुप्य ( वर्तन भांडे आदि ) के प्रमाणका अति. क्रम नहीं करना चाहिये । तथा संतोष भावना रखना चाहिये । एवं यह विचार करना चाहिये कि मैंने विना जाने इस थोड़ी सी वस्तुको तो ग्रहण कर ली, किन्तु पुनः मैं कभी इस प्रकार ग्रहण नहीं करूंगा ।।१९-२१॥
For Private And Personal Use Only