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: १६ : नि क्षेप
जुत्तीसुजुत्तिमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु ठवणं । कजे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये ॥ १ ।। दव्वं विविहसहावं जेण सहावेण होइ जं झेयं । तस्स णिमित्तं कीरइ एक्कं वि य दव्व चउभेयं ॥ २ ॥ णाम हवणा दव्वं भावं तह जाण होइ णिक्खेवं । दव्वे सण्णा णाम दुविहं पि य तं पि विक्खायं ।। ३ ।।
१ नाम मोह-रज-अंतराये हणणगुणादो य णाम अरिहंतो । अरिहो पूजाए वा सेसा णाम हवे अण्णं ॥ ४ ॥
२ स्थापना सायार इयर टवणा कित्तिम इयरा दु बिंबजा पढमा । इयरा इयरा भणिया ठवणा अरिहो य णायव्यो ।। ५ ।।
दव्वं खु होइ दुविहं आगम णोआगमेण जह भणिय । अरहंत-सत्थ-जाणो अणजुत्तो दव्व-अरिहंतो ॥ ६ ॥ णोआगम पि तिविहं देहं णाणिस्स भावि कम्मं च । गाणिसरीरं तिविहं चुद चत्तं चाविदं चेति ॥ ७॥
४ भाव आगम-णोआगमदो तहेव भावो वि होदि दव्यं वा । अरहंत-सत्थ-जाणो आगम-भावो दु अरहंतो ॥ ८ ॥ तग्गुणए य परिणदो णोआगम-भाव होइ अरहंतो । तग्गुणाई झादा केवलणाणी हु परिणदो भणिओ ।। ९ ॥
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