SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir : १६ : नि क्षेप जुत्तीसुजुत्तिमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु ठवणं । कजे सदि णामादिसु तं णिक्खेवं हवे समये ॥ १ ।। दव्वं विविहसहावं जेण सहावेण होइ जं झेयं । तस्स णिमित्तं कीरइ एक्कं वि य दव्व चउभेयं ॥ २ ॥ णाम हवणा दव्वं भावं तह जाण होइ णिक्खेवं । दव्वे सण्णा णाम दुविहं पि य तं पि विक्खायं ।। ३ ।। १ नाम मोह-रज-अंतराये हणणगुणादो य णाम अरिहंतो । अरिहो पूजाए वा सेसा णाम हवे अण्णं ॥ ४ ॥ २ स्थापना सायार इयर टवणा कित्तिम इयरा दु बिंबजा पढमा । इयरा इयरा भणिया ठवणा अरिहो य णायव्यो ।। ५ ।। दव्वं खु होइ दुविहं आगम णोआगमेण जह भणिय । अरहंत-सत्थ-जाणो अणजुत्तो दव्व-अरिहंतो ॥ ६ ॥ णोआगम पि तिविहं देहं णाणिस्स भावि कम्मं च । गाणिसरीरं तिविहं चुद चत्तं चाविदं चेति ॥ ७॥ ४ भाव आगम-णोआगमदो तहेव भावो वि होदि दव्यं वा । अरहंत-सत्थ-जाणो आगम-भावो दु अरहंतो ॥ ८ ॥ तग्गुणए य परिणदो णोआगम-भाव होइ अरहंतो । तग्गुणाई झादा केवलणाणी हु परिणदो भणिओ ।। ९ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy