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Achar
नय-वाद
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पुत्ताइबंधुवरगं अहं च मम संपयाइ जंपतो। उवयारासब्भूओ सजाइदव्वेसु णायव्वो ॥ ४५ ॥ ७३ आहरण-हेम-रयणं वत्यादीया मम ति जंपतो । उवयार-असब्भूओ विजादिदव्वेसु णायब्वो ॥ ४६॥ ७४ देसं च रज्ज-दुग्गं एवं जो चेव भणइ मम सव्वं । उहयत्थे उवयरिओ होइ असम्भूयववहारो ॥ ४७ ॥ ७५ एयंते हिरवेक्खे णो सिज्झइ विविह-भावगं दव्वं । तं तह वयणेयंते इदि वुझह सिय अणेयंतं ॥ ४८ ॥ ७६ जह रससिद्धो वाई हेमं काऊण भुंजये भोगं । तह णयसिद्धो जोई अप्पा अणुहवउ अणवरयं ॥ ४९ ॥ ७७
[देवसेनकृत लघुनयचक्र
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