________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्या न
जह कवचेण अभिजेण कवचिओ रणमुहम्मि सत्तणं । जायइ अलंघणिज्जो कम्मसमत्या य जिणदि य ते ॥ १ ॥ १६८१ एवं खवओ कवचेण कवचिओ तह परीस हरिऊणं । जायइ अलंघणिज्जो झाणसमत्यो य जिणदि य ते ॥ २॥ ८२ जिदरागो जिददोसो जदिदिओ जिदमओ जिदकसाओ । रदि-अरदि-मोह-महणो झाणोवगओ सदा होइ ॥ ३ ॥ ९८ धम्मं चउप्पयारं सुक्कं च चदुविधं किलेसहरं । संसार-दुक्ख-भीओ दुण्णि वि झाणाणि सो झादि ॥ ४ ॥ २९
अशुभध्यान ण परीसहेहिं संताविओ वि झाइ अट्ट-रुद्दाणि । सुठुवहाणे सुद्धं पि अट्ट-रुद्दा विणासंति ॥ ५॥ १७००
१ आर्तध्यान अट्टे चउप्पयारे रुद्दे य चउव्विधे य जे भेदा । ते सव्वे परियाणइ संथारगओ तओ खवओ ॥ ६॥ १ अमणुण्णसंपओगे इट्ठविओए परीसह-णिदाणे । अट्ट कसाय-सहियं झाणं भणिय समासेण ॥ ७॥ २
२ रौद्रध्यान तेणिक्क-मोस-सार-क्खणेसु तह चेव छव्विधारंभे । मई कसाथसहियं झाणं भणियं समासेण ॥ ८ ॥ ३ अवहट्ट अ-रुद्दे महाभए सुग्गदीए पच्चूहे । धम्मे सुक्के य सदा होदि समण्णागद-मदीओ ॥९॥ ४
For Private And Personal Use Only