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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्व समुच्चय समिति-५. १-ईया इरिया भासा एसण णिक्खेवादाणमेव समिदीओ । पडिठावणिया य तहा उच्चारादीण पंचविहा ॥ १० ॥ फासुयमग्गेण दिवा जुवंतरप्पेहणा सकज्जेण । जंतूण परिहरंती इरियासमिदी हवे गमणं ॥ ११ ॥ २-भाषा पेसुण्ण-हास-ककस-परणिदाप्पप्पसंसविकहादी । वज्जित्ता सपरहिंदं भासासमिदी हवे कहणं ॥ १२ ॥ ३-एषणा छादालदोससुद्धं कारगजुत्तं विसुद्धणवकोडी । सीदादी समभुत्ती परिसुद्धा एसणा समिदी ॥ १३ ॥ ४-आदान-निक्षेप णाणुवहिं संजमुवहिं सौचुवहिं अण्णमप्पमुवहिं वा । पयदं गहणिक्खेवो समिदी आदाणणिक्वेवा ॥ १४ ॥ ५-प्रतिस्थापन एगंते अञ्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे । उच्चारादिच्चाओ पदिठावणिया हवे समिदी ॥ १५ ॥ इंद्रियनिग्रह-५ चक्खू सोदं घाणं जिब्भा फासं च इंदिया पंच । सग-सग-विसएहितो णिरोहियब्वा सया मुणिणा ॥ १६ ॥ १-चक्षुनि सचित्ताचित्ताणं किरिया-संठाण-वण्णभेएसु । रागादिसंगहरणं चक्खुणिरोहो हवे मुणिणो ॥ १७ ॥ २-श्रोत्रनि० सज्जादिजीवसद्दे वीणादिअजीवसंभवे सद्दे । रागादीण णिमित्ते तदकरणं सोदरोधो दु ॥ १८ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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