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लोक-स्वरूप
कुलकर-१४ एदे चउदस मणुओ पदिसुदपहुदी हु णाहिरायंता । * युव्यभवम्मि विदेहे राजकुमारा महाकुले जादा ॥४३॥ ४-५०४ कुलधारणादु सव्वे कुलधरणामेण भुवणविक्खादा । कुलकरणाम्म य कुसला कुलकरणामेण सुपसिद्धा ॥४४॥ ४-५०९ एत्तो सलायपुरिसा तेसट्ठी सयलभुवण-विक्खादा । जायति भरहखेत्ते गरसीहा पुण्णपाकेण ॥४५॥ ४-५१० तित्थयर-चक्क-बल-हरि-पडिसत्त णाम विस्सुदा कमसो । विउणियबारसें-बारसे-पयत्थे-णिधि -रंध-संखाए ॥४६॥ ४-५११
तीर्थंकर-२४ उसहमजियं च संभवमहिणंदण-सुमइ णामधेयं च । पउमप्पहं सुपासं चद पह-पुप्फयंत-सीयलए ॥४७॥ ४-५१२ सेयंस-वासुपुज्जे, विमलाणंते य धम्म-संती य । कुंथु-अर मल्लि-सुब्बय-गमि-णेमी-पास-बदमाणा य ॥४८॥४-५१३ पणमहु चउवीस जिण तित्थयरे तत्थ भरहखेत्तम्मि । भव्याणं भवरुक्खं छिदंते णाण-परसूहिं ॥४९|| ४-५१४
___ चक्रवर्ती-१२ भरहो सगरो मघवा सणंकुमारो य संति कुंथु अरा । तह य सुभोमो पउमो हरि-जयसेंणा य बम्हदत्तो य ॥५०॥४-५१५ छक्खड-पुढविमंडल-पसाहणा कित्ति-भरिय-भुवणयला ।
एदे बारस जादा चक्कहरा भरह-खेत्ताम्म ॥५१॥ ४.५१६ ___ * सुषम-दुषमा काल के आन्तिम भाग में क्रमशः चौदह कुलकर होते है जो अपने अपने काल की परिस्थिीत के अनुसार युगधर्म का उपदेश देते हैं। उन १४ कुलकरों के नाम इस प्रकार हैं-प्रतिश्रुति', सन्मति, क्षेमकरें, क्षेमधर, सीमकर, सीमंघर, विमलवाहन, चक्षुष्मान, यशस्वी', आभिचन्द्र, चन्द्रर्भि, मरुदेव', प्रसेनजित्, नाभिरीय ।
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