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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3. Remember thou keep holy the Sabbath Day. 4. Honour thy father and thy mother. 5. Thou shalt not kill. 6. Thou shalt not commit adultery. 7. Thou shalt not steal. 8. Thou shalt not bear false witness against thy neighbour. 9. Thou shalt not covet thy neighbour's house. 10. Thou shalt not covet thy neighbour's wife. आश्चर्य यह नहीं है कि इन धर्मलक्षणों में परस्पर कुछ नामभेद है, आश्चर्य की बात तो यथार्थतः यह है कि धर्म के दश अंग इन सभी धर्मों में माने गये हैं और उन में असाधारण समानता है । [ वारस अणुवेक्खा, हिन्दी अनुवाद सहित, जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, १९१० । कुन्दकुन्द और उनके ग्रंथों आदि के सविस्तर विवेचन के लिये देखो प्रवचनसार की भूमिका डा. उपाध्येकृत, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, ९ । बम्बई, १९३५ भावना यह संकलन स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा में से किया गया है । इस ग्रंथ के कर्ता ने अन्त में अपनी रचना के सम्बंध में केवल इतना ही कहा है कि जिणवयणभावणझं सायिकुमारेण परमसद्धाए । रइया अणुवेक्वाओ चंचल-मण-रुंभणडं च ॥४८७॥ बारस अणुवैक्खाओ भणिया हु जिणागमाणुसारेण । जो पढइ सुणइ भावइ सो पावद उत्तमं सोक्खं ॥४८८॥ तिहुयण-पहाणसामि कुमारकाले वि तविय-तवयरणं । वसुपुज्जसुयं मल्लिं चरियतियं संथुवे णिच्चं ॥४८९॥ इन पर से हमें कर्ता के संबंध में केवल इतनी ही जानकारी प्राप्त होती है कि उनका नाम 'स्वामिकुमार' था और वे संभवतः बाल-ब्रह्मचारी थे । 'कुमार' और 'कार्तिकेय' पर्यायवाची होने से उनका नाम कार्तिकेय भी प्रसिद्ध है जो ग्रंथ के नाम में भी हमें दिखाई देता है । कुन्दकुन्द कृत बारस अणुवेक्खा और प्रस्तुत ग्रंथ का विषय व भाषा-शैली आदि में बहुत कुछ साम्य है। यदि For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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