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मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुन्दाद्या जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ प्रस्तुत रचना के अतिरिक्त कुन्दकुन्दाचार्य के अष्ट पाहुड़ तथा प्रवचनसार पंचास्तिकाय, समयसार और नियमसार ये बारह ग्रंथ खूब प्रख्यात हैं । इनके अतिरिक्त रयणसार व दशभक्ति आदि कुछ और रचनायें भी कुदकुन्द कृत कही जाती हैं। किन्तु उनके कर्तृत्व के सम्बन्ध में मतभेद है। घटखंडागम की एक परिकर्म नामक टीका भी कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा रचे जाने का उल्लेख मिलता है, किन्तु यह रचना व उसका कोई विशेष परिचय अप्राप्य है।
षट्खंडागम की रचना वीर निर्वाण से ६८३ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात् किसी समय हुई । और यदि कुन्दकुन्दाचार्य द्वारा इस पखंडागम की टीका लिखे जाने की अनुश्रुति में कोई यथार्थता है तो हमें कुन्दकुन्दाचार्य का काल इससे कुछ और पश्चात् मानना पड़ेगा। निचले कालस्तर के लिये हमारे समक्ष शक ३८८ का मर्करा ताम्रपत्र है जिसमें कुन्दकुन्दान्वय का उल्लेख है । अतः कुन्दकुन्दाचार्य का काल दूसरी और पांचवी शताब्दि के बचि अनुमान किया जा सकता है।
बारस अणुवेक्खा में ९१ प्राकृत गाथाएं हैं, जिनमें चारही भावना धर्म के विवरण में प्रस्तुत दश धर्मों का वर्णन आया है जो मुनिधर्म के पालन के लिये अत्यंत आवश्यक एवं साधारणतः धार्मिक जीवन के लिये बहुत उपयोगी माना गया है। प्रसंगतः यह ध्यान देने योग्य बात है कि मनुस्मृति आदि ग्रंथों में भी धर्म के दश लक्षण बतलाये हैं। यथा
धृतिः क्षमाः दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।
(मनुस्मृति ६,९२) इसी प्रकार बौद्ध धर्म की दश पारमिताएं हैं जिनके पालन से ही मनुष्य 'बुद्ध' हो सकता है-दान, शाल, नैष्कर्म्य, प्रज्ञा, वीर्य, शान्ति, सत्य, अधिष्ठान, मैत्री और उपेक्षा ।
यही नहीं, बाइबिल में ईसाई धर्म के प्राणस्वरूप दश आदेश दिये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं:
1. Thou shalt not have strange Gods before me.. 2. Thou shalt not take the name of the lord thy
God in vain.
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