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मुनि-धर्म [२]
५-अदंतधावन अंगुली, नख, अवलेखिनी ( दांतौन ) काली (तृणविशेष), पैनी कंकणी, पक्षकी छाल (वक्कल), आदिसे दांतके मैलको नहीं शुद्ध करना, यह इंद्रिय संयमकी रक्षा करनेवाला अदंतमन मूलगुणवत है ।। ३३ ।।
६-स्थिति-भोजन अपने हाथकी अंजलिपुटसे, भीत आदिके आश्रय रहित, चार अंगुलके अंतरसे समपाद खड़े रहकर, अपने चरणकी भूमि, झूठन पड़नेकी भूमि, जिमाने वालेके प्रदेशको भुमि, ऐसी तीन भूमियोकी शुद्धतासे आहार ग्रहण करना, यह स्थिति-भोजन नामक मूलगुण है ।। ३४ ।।
७-एकभक्त सूर्य के उदय और अस्तकालकी तीन घड़ी छोड़कर, वा मध्यकालमें एक मुहूर्त, दो मुहूर्त या तीन मुहूर्त कालमें एक बार भोजन करना, यह एकभक्त मूलगुण
इस प्रकार जो कोई विधियुक्त मूलगुणोंको मन-वचन-कायसे पालता है वह तीन लोकमे पूज्य होकर अक्षय सुखरूप मोक्षको प्राप्त करता है।। ३६ ॥
[वट्टकेरकृत मूलाचार]
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